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23 Nov 2020 · 1 min read

मुसाफिर

मुसाफिर की तरह है इंसान यहां,
सबके हैं अपने-अपने काम यहां।

सब मशरूफ अपनी ज़रूरत में,
कोई मुहब्बत में कोई नफरत में,
जीना – मरना भी भूल रहे इंसान,
सब‌ चला रहे हैं स्वार्थ की दुकान,

सब बनाने में लगे पहचान यहां,
मुसाफिर की तरह है इंसान यहां।

छोटी सी जिन्दगी खत्म हो जाएगी,
अच्छे- बुरे सारे कर्म हमें सताएगी,
आखिरी ठिकाने की तैयारी कर लें,
सफर में ईमान की खरीदारी कर लें,

है बेकार चंद लम्हों की शान यहां,
मुसाफिर की तरह है इंसान यहां।

नूरफातिमा खातून नूरी(शिक्षिका)
जिला-कुशीनगर‌‌‌

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