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21 Nov 2020 · 1 min read

तेरी ख़ुश्बू किधर नहीं आती

तेरी ख़ुश्बू किधर नहीं आती
तेरी लेकिन ख़बर नहीं आती

हिज्र में ये सवाल उठता है
जल्द क्यूँकर सहर नहीं आती

है जो उम्मीद इक मुझे तुझसे
पूरी होती नज़र नहीं आती

ग़म की आयीं घटाएँ यूँ घिरकर
राहे मंज़िल नज़र नहीं आती

इश्क़ में डूबकर हुआ ऐसा
अब हंसी बात पर नहीं आती

यूँ ख़यालों में गुम हुआ उसके
मुझको मेरी ख़बर नहीं आती

होश ‘आनन्द’ किसको कहते हैं
बेख़ुदी भी नज़र नहीं आती

~ डॉ आनन्द किशोर

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