मोहन राकेश
वो आने वाला है एक बार फिर बस दो रोज़ में उसकी गहरी आंखों पर मोटा काला चश्मा है सिर पर उलझे बालों का पफ उसके गोल चेहरे की परीधि से ज़्यादा दूर नहीं।8 जनवरी मोहन राकेश की जन्मतिथि है जीवन में कुछ भी निश्चित नहीं एक और ज़िन्दगी का प्रशांत या मिसपाल की नौकरी पेशा ज़िन्दगी से जुड़ा युगल
कहा जा सकता है कि हर दूसरी कहानी पहली कहानी से भिन्न है पर पात्र फिर भी उलझे हुए स्वयं से या किसी दूसरे से।आषाढ़ का एक दिन का कालिदास विशिष्ट होकर भी खल की भांति दिखता है तो आधे अधूरे की सावित्री बिन्न्नी किन्नी कभी स्वयं से खीझती है तो कभी आसपास की ज़िन्दगी से।अंतराल,अंधेरे बंद कमरे आदि औपन्यासिक पात्र भी इसी तरह के
उलझे बिखरे प्रतीत होते हैं तभी वो डायरी के सहारे कभी अनजाने चेहरों में समीपता पाते हैं।एक ठहरा हुआ चाकू,ज़ख्म आदि कितनी ही कहानियों में वो स्वयं दिखते है।रंगमंच के मुताबिक दृश्य योजना,ध्वनि, प्रकाश और पात्रों की एकांत में की गयी छोटी बड़ी प्रतिक्रिया का मंचन मोहन राकेश के नाटकों में उत्कृष्ट शैली में हुआ है जिससे सारे किरदार जीवंत हो चले हैं।
क्या न पढू या किसे छोड़ दूं मोहन राकेश के संबंध में कहना अभी कुछ भी निश्चित नहीं उसी तरह जैसे उनकी कृतियों के विस्मरणीय पात्र ••
मनोज शर्मा