लड़ रहा आदमी
212 212 212 212
खुद से ही आज खुद लड़ रहा आदमी
अपनी ही जात से डर रहा आदमी
दौड़ते भागते सोते औ जागते
सपनो के ढेर पर सड़ रहा आदमी ।
इस कदर मतलबी बन गया आज वो
खुद के ही नज़रो में गड़ रहा आदमी ।
रात दिन छ्ल रहा अपने ही आपको
अपनो के पीछे ही पड़ रहा आदमी ।
अब अजय इस जमाने की क्या बात हो
आदमी से जहाँ जल रहा आदमी
-अजय प्रसाद