कोरोना काल
कोरोना काल
कैसा साल देखो ये आया
अचारों की खुशबू नही आई
ना बर्फ की चुस्की वाला ही आया
ना गन्ने के रस वाला ही आया
ना मटके की कुल्फी की आवाज आई।
कैसा साल देखो ये आया
ना शादियों के कार्ड आये
ना लिफाफे ही घर मे आये
ना किसी के मरने में लोग आए
ना उसकी दसवें की बैठक हो पाई।
कैसा साल देखो ये आया
ना साड़ी की खरीदारी ही हुई
ना मेकअप का सामान ही लाई
ना चप्पल की फरमाइश ही हुई
ना गहनों की लिस्ट थमा पाई।
कैसा साल देखो ये आया
ना माँ के घर जाना हो पाया
ना पापा के साथ बाते कर पाई
ना माँ का सारा प्यार बटोर पाई
ना पापा का दुलार ही ले पाई।
कैसा साल देखो ये आया
ना मंदिर की घंटी,बजा पाई
ना पूजा की थाली ही सजा पाई
ना भक्तों की कतार में लग पाई
ना भगवान का प्रसाद ले पाई।
कैसा साल देखो ये आया
सदा रहेगा याद कैसा समय आया
साल का मलाल जीवन भर आएगा
जीवन में फिर न आये ऐसा समय
कभी न हो ऐसा साल न कोरोना काल।