आज़ाद गज़ल
मंजिलों को खटकता हूँ
दर-बदर जो भटकता हूँ ।
हैसियत और हसरत के
दरमियां ही लटकता हूँ ।
सिर्फ टेबल बदलता है
फाइलों सा अटकता हूँ ।
रोज़ जीना जहर पीना
गम के. आसूँ गटकता हूँ ।
ले खुदा आ. गया दर पे
अब. मैं भी सर पटकता हूँ ।
-अजय प्रसाद
मंजिलों को खटकता हूँ
दर-बदर जो भटकता हूँ ।
हैसियत और हसरत के
दरमियां ही लटकता हूँ ।
सिर्फ टेबल बदलता है
फाइलों सा अटकता हूँ ।
रोज़ जीना जहर पीना
गम के. आसूँ गटकता हूँ ।
ले खुदा आ. गया दर पे
अब. मैं भी सर पटकता हूँ ।
-अजय प्रसाद