आज़ाद गज़ल
लगता है गर आपको बुरा मैं क्या करूँ
मेरा तो यही है तौर-तरीका मैं क्या करूँ ।
कलम भटकती नहीं है सच के रास्ते से
हक़ीक़त कहती है हमेशा मैं क्या करूँ ।
जानता हूँ आइने पसंद नहीं है आपको
हूँ नहीं कुछ भी इसके सिवा मैं क्या करूँ ।
खैर छोड़िए मुझको मेरे हालात पर यहाँ
हर दौर में एक जैसा ही रहा मैं क्या करूँ ।
दरियादिल दिखतें हैं हुजूर हर चुनाव में
हार जातें हैं जीत कर वफ़ा मैं क्या करूँ ।
उनका भी अब यारों कोई दोष ही नहीं है
हुआ जो मेरी किस्मत में था मैं क्या करूँ ।
इस तरह भी अजय आजमाती है ज़िंदगी
रूठ जातें अपने बंदो से खुदा मैं क्या करूँ ।
–अजय प्रसाद