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16 May 2020 · 2 min read

"अंडभक्त" कथा

एक भक्त है !
कभी-कभी वह झगड़े के मूड में न होकर कुछ जिज्ञासा-शमन के भाव से मिलता है..

एक दिन वह बोला,” हे नास्तिक, कुमार्गी, देशद्रोहि भ्राता…एक बात बताओ
तुमलोग हमलोगों को भक्त कहते हो क्योंकि हम मोदीजी की भक्ति करते हैं “अंधभक्त” कहते हो क्योंकि हम उनकी बात आँख मूँदकर मानते हैं
पर यह “अंडभक्त” क्या होता है ?”

मैंने कहा,” हे मस्तिष्क-रिक्त भ्राता, मनुष्यरूपेण गदर्भ शावक मैं तुम्हारी बाल-सुलभ उत्सुकता को शांत करने के लिए स्वामी रामकृष्ण परमहंस द्वारा सुनाई गयी एक कथा सुनाता हूँ जो ‘श्रीरामकृष्णवचनामृत’ खंड-1 में वर्णित है ! कथा में किंचित अश्लीलता प्रतीत हो सकती है पर ऐसे सिद्ध संत इसे इसी रूप में कह गए हैं और फिर तुम्हारे विवेक के दरवाज़ों पर दस्तक देने के लिए मुझे भी थोड़ी मर्यादा तोड़नी पड़ रही है…
अब कथा सुनो—–

“एक बार एक गाँव के लोगों ने देखा कि एक सियार दिन-रात एक सांड के पीछे-पीछे लगा रहता है वह घास चरे, या पानी पीये, या आराम करे, या एक गाँव से दूसरे गाँव की दूरी तय करे,, सियार लगातार साथ लगा रहता था ! दरअसल वह सियार सांड के लटकते लाल “अन्डकोशों” को फल समझ रहा था और यही सोचकर उसके पीछे लगा रहता था कि कभी न कभी ये फल टपक जायेंगे और उसके हाथ लग जायेंगे, कहने की ज़रूरत नहीं कि सियार की उम्मीद कभी पूरी नहीं होनी थी, पर उसने उम्मीद नहीं छोडी….

“तो वत्स !
जो अंडभक्त होते हैं वे उसी सियार की कोटि के लोग होते हैं…उन्हें लगता रहता है कि एक न एक दिन मोदीजी के वायदे पूरे होंगे, घोषणायें रंग लायेंगी और भारत की तरक्की का फल उन्हें भी मिलेगा और उनकी ज़िंदगी खुशहाल हो जायेगी… तमाम जुमलेबाजियों के सामने आने के बाद भी उनकी मोदीजी से उम्मीद नहीं टूटती और वे उसी सियार की तरह मोदीजी के पीछे चलते रहते हैं ऐसे ही भक्तों को विद्वज्जनों ने अपने शास्त्रों “अंडभक्त” की संज्ञा से विभूषित किया है

भक्त को कुछ देर तो बात समझने में लगी.. फिर जैसे ही बात भेजे में घुसी, उसने भड़ककर पाँच फुट की ऊँची कूद और पाँच फुट की लम्बी कूद एक साथ ली और गली में उतरकर जोर-जोर से चिल्लाने लगा मैंने उससे कहा,”लॉकडाउन के समय सड़क पर हंगामा करोगे, फौरन पुलिस वाले आकर “तशरीफ़ का टोकरा” लाल कर देंगे और हवालात में ले जाकर बंद कर देंगे !” फिर भक्त एकदम से चुप हो गया और पीछे मुड़-मुड़ कर अग्निमय आँखों से घूरता हुआ अपने घर की ओर चला गया…
सुनील पुष्करणा
16/05/2020

इतिश्री “अंडभक्त” कथा समाप्तम
???

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