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11 Apr 2020 · 1 min read

बंठाधार | गढ़वाली कविता | मोहित नेगी मुंतज़िर

इज्जत आईं धार मां अर बंठा बजार मां
चार कूड़ा लैंदा होयां एक द्वी हज़ार मां

कुंडू की धरपली मां बांदरु का अंडा दिन्या
बिरालूं अर मुसूं का किराया पर छन कमरा लिन्या
मनख्युन त बांजा भैंसा पिजेलीन बजार मां
चार कूड़ा लैंदा होयां एक द्वी हज़ार मां।

पणधारा भी हाइजंप ख्यना तै तयार होयां
चौके पठाली घिच्ची ह्यना तै तयार होयां
कुणयूँ कु बदबदल भी होणु च खेंदवार मां
चार कूड़ा लैंदा होयां एक द्वी हज़ार मां।

सास की हाथी ख़्वटी कमरी भी छन कचकौणा
बुडयूँ तै त राते रात भितरे छन भचकौणा
प्योंणु, स्याणु, खाणु, लाणु यन हाड पोड़ी तौंते
कती बुड़या त भागणा छन बंडी अर सुलार मां
चार कूड़ा लैंदा होयां एक द्वी हज़ार मां।

सैरे पुंगडीन भी अब राशनकार्ड बणेली
उखडै कतरीन भी गारंटी रोजगार मां नौ लिखैली
मुसूं का पोस्ट ऑफिस खुल्या पुंगडूं का पगार मां
चार कूड़ा लैंदा होयां एक द्वी हज़ार मां।

प्रेमरी इंटर का जू कूड़ा बणीन सन दो हज़ार मां
अब त हाईस्कूले लैब चनीन एक बिकर ज़ार मां
सभी छोरा कट्ठा होयां घिरे-घारे डार मां
उतडां त्वटगां ह्वेते स्कुल्या घाम तापणा धार मां
चार कूड़ा लैंदा होयां एक द्वी हज़ार मां।

प्योंण वाला कच्ची पक्की सभी धाणी प्योण लग्यां
चार सौ की हाफ़ पीकी बोतल बीस खुजौण लग्यां
नशा मुक्ति केंद्र वालुं ठ्यका खोल्यां बजार मां
चार कूड़ा लैंदा होयां एक द्वी हज़ार मां।

Language: Hindi
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