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29 Jan 2020 · 1 min read

ऋतुराज बसंत

प्रकृति की मनोरम छटा देख
व्याकुल मन हर्षाया
चहुँ ओर फैली हरियाली
शाखाओं पे कोयल बोली

पीत वर्ण की चूनर में
धरा सजी सुनहरी
अन्तर्मन में जगी आशा
ऋतुराज बसंत है आया

भानु रश्मि बिखरे धरा तक
मानो युग में नव राह दर्शाती
नभ से हटी ओस की चादर
नवयुग अभ्युदय का आह्वान करती

रंग बिरंगे कुसुम मन्द मन्द मुस्कान लिए
जीवन का हर बिम्ब दिखाते
आशाओं का वेग है लाया
ऋतुराज बसंत है आया

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