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28 Jan 2020 · 1 min read

मेरा पहला प्यार 'मेरी मां'

जो खुद गीले में रहकर ,मुझे सूखे में सुलाती है
जो खुद भूखी रहकर मुझे पंचामृत पिलाती है
मेरे लिए तो वह मेरा जहां है
मेरा पहला प्यार कोई और नहीं वो मेरी मां है।।

बचपन में अंंगुली पकड़कर चलना सिखाती है
गिर ना जाऊं कहीं मैं संभलना सिखाती है
रूदन करूं जब मैं लोरी गाकर सुनाती है
शरारत करने पर , प्यार भरी डांट लगाती है
ऐसा स्नेह और वात्सल्य भला और कहां है।।
मेरा पहला प्यार…..

मेरे जीवन की मां ही प्रथम पाठशाला है
मां ने ही प्रथम गुरु का पद संभाला है
तेजस्वी विचारों से पोषित करके किया जीवन में उजाला है
संस्कारों का सिंचन करके शरीर बनाया शिवाला है
ऐसी पवित्र दुख हरने वाली वह वृक्ष की ठंडी छांव है
मेरा पहला प्यार…..

नि:स्वार्थ भाव से संतान के लिए जीती है मां
फिर भी जीवन में दुखों का घूंट पीती है मां
विशाल मन सागर समान ऐसी प्रीती है मां
संस्कार रोपित करने वाली वो संस्कृति है मां
उसके बिना सूना-सूना लगता जहां है
मेरा पहला प्यार……
कृष्ण कुमार ‘धत्तरवाल’

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