वेदना
कठपुतली बन कर रही, किसी और के हाथ।
तड़प वेदना का रहा,जीवन भर का साथ।।
मन की अंतर्वेदना, समझ सका है कौन।
बढ़े पीर हद से अधिक, हो जाती हूँ मौन।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली
कठपुतली बन कर रही, किसी और के हाथ।
तड़प वेदना का रहा,जीवन भर का साथ।।
मन की अंतर्वेदना, समझ सका है कौन।
बढ़े पीर हद से अधिक, हो जाती हूँ मौन।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली