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5 Dec 2019 · 1 min read

परख लॉबिंग लिंचिंग अतिवृष्टि

मैं कहिन आँखिन देखी,
तुम फँसे अपनी कथनी ,
व्रत किया उपवास नहीं,
लिये खडे धूप अगरबत्ती,

मेरी चाहत मुझ ही से पूरी .
आज नहीं कोई भी अधूरी,
जब भूख लगी खा लिए,
शादी ब्याह सब के सब पूरी

संतति दो की हुई उत्पति,
हालात आजतक नहीं बिगड़ी,
हाँ अपनों ने की छीना झपटी,
कौन कहे उसे छलिया कपटी,

जो हैं वो तुम दोउन के भीतर,
कौन मंशा रची सृष्टा सृष्टि .
वो तुम्हारी अपनी खटपट .
मैं कहिन आँखों देखी.

परख लॉबिंग लिंचिंग अतिवृष्टि.
तब सजेगी श्रेष्ठ गृहस्थी .

डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस

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