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4 Dec 2019 · 1 min read

नस़ीहत

ज़िन्दगी भर नफ़े नुक़सान का हिस़ाब रखा।
जो लम़्हे गवाँ दिए उनका हिस़ाब ना रखा।
अपनी खुशगवारी और खुदग़र्ज़ी में मश़गूल रहे दूसरों के दर्द़ का खय़ाल ना रखा ।
अब कहते हो है न कोई मेरा दर्द बांटने वाला ।
है न कोई मेरा ख्या़ल रखने वाला ।
वक़्त रहते जो श़ख्स बदलता नहीं ।
उसे कोई बढ़कर हाथ देने वाला मिलता नही ।
अपने ही जुऩून मे तुम अपने म़ाहौल से अनजान रहे। अब वो ही श़ख्स जो तुम्हारे साथ थे तुम्हें ना पहचान रहे ।
बेरहम बने रहे जिंदगी भर अब तुम हमदर्दी तलाश रहे ।
अपनी हस्ती के ग़ुरूऱ मे तुम औरो की हस्ती भुलाते रहे।
अब हरगिज़ न लौटकर आयेंगे वो चाहे लाख तुम उन्हे बुलाते रहे।

1 Like · 2 Comments · 342 Views
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