आज़ाद गजल
कत्ल कर के मेरा,कातिल रो पड़ा
जब हुआ कुछ न हासिल, रो पड़ा ।
समंदर तो खुश था मुझे डूबो कर
लाचारी पे अपनी साहिल रो पड़ा ।
आया तो था बड़ी चालाकी दिखाने
नादानीयां देख मेरी कामिल रो पड़ा।
किस कदर बेअदब हैं ये अदब वाले
बस यही सोंच कर जाहिल रो पड़ा ।
मदद की गरीब ने इक अमीर की
अपनी तंग दिली पे काबिल रो पड़ा ।
गुजर रही थी मैयत मेरी मुहब्बत की
होकर जनाज़े में मैं शामिल, रो पड़ा ।
-अजय प्रसाद