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5 Aug 2024 · 1 min read

चला आया घुमड़ सावन, नहीं आए मगर साजन।

चला आया घुमड़ सावन, नहीं आए मगर साजन।
टपकती छत सतत मेरी, छवाऊँ तो कहाँ छाजन ?
दुलारा है तुम्हारा ये, मगर मुझको सताता है।
कहो भोले मुझे ही क्यों, बनाया कोप का भाजन ?

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

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