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14 Apr 2019 · 1 min read

हमारी ईद हो जाए

जरा ठहरो मुकद्दर आजमाकर देख लेता हूँ
इन्हीं बंजर जमीं में गुल खिला कर देख लेता हूँ

खुशी रहती नही आँगन मेरे ज्यादा दिनों तक तो
खुदाया अब गमों से घर सजाकर देख लेता हूँ

जो किस्मत का लिखा होता अगर होता वही है तो
हवाओं में चरागों को जलाकर देख लेता हूँ

तुम्हारी दीद हो जाए हमारी ईद हो जाए
मुहब्बत है अगर सच्ची बुलाकर देख लेता हूँ

कैसे पहचानता मुझको अँधेरा है घना छाया
जरा सी रौशनी को दिल जलाकर देख लेता हूँ

– ‘अश्क़’

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