मुक्तक
“ज़ात,मज़हब,रंग के भेद अब सारे हुए,
आदमी था एक जिसके लाख बँटवारे हुए,
लफ़्ज़, जिनका था हमारी ज़िंदगी से वास्ता
आपके होंठों पर आकर खोखले नारे हुए “
“ज़ात,मज़हब,रंग के भेद अब सारे हुए,
आदमी था एक जिसके लाख बँटवारे हुए,
लफ़्ज़, जिनका था हमारी ज़िंदगी से वास्ता
आपके होंठों पर आकर खोखले नारे हुए “