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14 Jan 2019 · 1 min read

भानु चला उतरायण

विधा :-कविता
शीर्षक :- भानु चला उतरायण

रश्मियों के रथ पर हो के विराजित,भानु चला उत्तरायण ओर|

कंचन से बच्चों के कर कांच के कंचे पिल बनायें मचायें शोर|

भावों की पुण्य सरिता बहे उर में,आस्था की पतंग ले नभ हिलोर|

मुंह मिठा हो तिल गजक गुड़ से,घी तृप्त चूरमा बने खुशियों की कोर|

लख लख बधाइयाँ लोहडी़ की व अकूत मंगलकामनाओं कि टूटे नहीं ये कभी डोर|
✍✍
जीवन दान चारण अबोध

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