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4 Nov 2018 · 1 min read

अमिय स्वरूपा माँ

“अमिय स्वरूपा माँ”
(राधेश्यामी छन्द)

घट भीतर अमृत भरा हुआ, नैनों से गरल उगलती है,
मन से मृदु जिह्वा से कड़वी, बातें हरदम वो कहती है,
जीवन जीने के गुर सारे, बेटी को हर माँ देती है,
बेटी भी माँ बनकर माँ की,ममता का रूप समझती है।

जब माँ का आँचल छोड़ दिया, उसने नूतन घर पाने को,
जग के घट भीतर गरल मिला,मृदुभाषी बस दिखलाने को,
माँ की बातें अमिय स्वरूपा, तूफानों में पतवार बनी,
जीवन का जंग जिताने को, माता ही अपनी ढाल बनी।

जीवन आदर्श बनाना है, अविराम दौड़ते जाना है
बेटी को माँ की आशा का, घर सुंदर एक बनाना है,
मंथन कर बेटी का जिसने, अमृत सा रूप बनाया है,
देवी के आशीर्वचनों से,सबने जीवन महकाया है।

धरती पर माँ भगवान रूप, ममता की निश्छल मूरत है
हर मंदिर की देवी वो ही, प्रतिमा ही उसकी सूरत है
जो नहीं दुखाता माँ का मन, संसार उसी ने जीता है
वो पुत्र बात जो समझ सके,जीवन मधुरस वो पीता है।

सुचिता अग्रवाल “सुचिसंदीप”
तिनसुकिया,असम

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