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14 Oct 2018 · 2 min read

बेटी की वेदना - कौन सुनेगा

बेटी की वेदना – कौन सुनेगा
सुनकर वेदना बेटी की, जग यह सारा रोया है
कलयुग के रावण ने सबका, चैन सुकून भी खोया है ।
कष्ट और वेदना को उसने, धागे में एक पिरोया है
कानून बनाकर प्रशासन ,कुंभकरण की नींद में सोया है।।

नशे के कारोबारियों ने तो, जहर खूब फैलाया है
शराब ,चरस और गांजा भी तो, रग-रग में आज समाया है ।
बेटी ,बहू और बच्चों को ,धोखे से, नशा पिलाया है
मुजरिम वह भी है, जिसने यह सब आज चलाया है ।।

दर-दर भटके माता-पिता ,केस दर्ज नहीं हो पाया है
डांट – डपट ताकत के बल पर, खूब उन्हें तड़पाया है ।
चीख रही बेटी चौखट पर, उपचार नहीं हो पाया है
मानवता नहीं इस जग में, नियमों से और सताया है ।।

आधुनिकरण का नाम लेकर, चलचित्र हमें दिखाया है
तुच्छ संवादों और तस्वीरों को, कमाई का जरिया बनाया है ।
जनता तक ना पहुंचे ये, सेंसर बोर्ड बनाया है
फिल्में धड़ल्ले से चल रही, ठेंगा इसे दिखाया है ।।

देकर आशियाना इन बच्चों को, उसने नाम कमाया है
उसी सुधार गृह में एक, जालिम भेड़िया भी तो बिठाया है ।
रक्षक ही बन जाता है भक्षक, समझ नहीं कोई पाया है
संरक्षक के नाम पर अपना ,पल्ला झाड़ दिखाया है ।।

बीती है उस बिटियाँ पर क्या ,समझ नहीं कोई पाया है
जख्मी हालत में उसको, नोटों का बैग थमाया है ।
सपने हुए हैं चूर-चूर, बनाकर महल ढहाया है
स्वावलंबी जीवन मिले उसे, कोई नहीं सोच पाया है ।।

कुछ ऐसे दर भी है जिसने , सबका माथा झुकाया है
बहन- बेटियों को उसने, अपना शिकार बनाया है ।
बिटियाँ का क्या होगा भविष्य ,कोई नहीं सोच पाया है
धर्म की आड़ में उसने, लोकतंत्र का मजाक उड़ाया है ।।

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