Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Sep 2018 · 4 min read

श्राद्ध और ब्राह्मण भोज

श्राद्ध और ब्राह्मण भोज

आज कल एक नई फैशन और नई सोच समाज में तेजी से बढ़ रही है ।जहां शिक्षित वर्ग इसका अनुसरण करते नजर आ रहे हैं, वहीं पुरातन वादी सोच के व्यक्ति इसका विरोध भी कर रहे हैं। क्या आप सभी में से किसी ने कभी सोचा है कि हम साथ पक्ष में ब्राह्मण को भोजन क्यों कराते हैं ?इस रीति के पीछे क्या राज है ?
हमारा समाज और उसकी परंपराएं काफी पुरातन समय से चली आ रही है ।पहले समाज चार वर्गों में बांटा था।
ब्राह्मण , क्षत्रिय ,वैश्य और शूद्र ।
सभी के अपने अलग-अलग कार्य नियत थे।
ब्राह्मण का कार्य पूजा-पाठ और वेद पठन था । ब्राह्मण की आय का साधन, जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत चलने वाले सभी संस्कारो को करना था,जिस में मिली दक्षिणा से वह अपने परिवार और उस की आवश्यकता को पूरा करता था।
क्षत्रिय वर्ग के लोगों का कार्य समाज की रक्षा करना और संचालन करना था। समाज की नीतियों को संभालना था। अपने देश और धर्म की रक्षा करना छत्रिय का फर्ज था देश की रक्षा के लिए युद्ध करने का अधिकार क्षत्रिय वर्ग को था शस्त्र चलाने का अधिकार इन के पास सुरक्षित था।

तृतीय वर्ग वैश्य वर्ण ,के लोगों का कार्य रोजगार करना और व्यापार करना था ।साहूकार से लेकर, दुकानदार सभी इसी वर्ण में आते थे और उनकी आय का साधन उनका अपना व्यापार था ।
सभी वर्ग के लोग अपना अपना कार्य करते थे।
चौथा वर्ग शुद्र था,जिस वर्ण के लोगों का कार्य सफाई करना था।
चूँकि शुद्र का कार्य समाज और मुहल्ले की सफाई का था,तो स्वास्थ्य और सुरक्षा की दृष्टि से लोग इन्हें नही छूते थे,क्योंकि उस समय गटर पाइप लाइन्स नही थे।
मल,मूत्र और गंदगी सीधा नाली में ही होती थी।शौचालय भी ऐसे होते जिसमे,मल एकत्रित रहता था।उसको भर कर ये लोग नाली में बहा देते थे।
तो कीटनाशक भी कहाँ थे उस समय,गोबर और कंडे जला कर कीटाणु खत्म कर दिए जाते थे,तो कीटाणु ना फैले एडलिये,सफाई कर्मी को छूने की मनाही थी।
लेकिन धीरे धीरे कुरूतियों के कारण शुद्र को कुलीन और मलिन समझ समाज से नीचा और तुक्ष्य समझा जाने लगा।जो कि बनायी गयी वर्ण व्यवस्था के विरुद्ध और अनुचित था।

अब बात करते है, प्रथम वर्ण यानी ब्राह्मण की तो सबसे पूजनीय वर्ण था इसलिए समाज प्रथम स्थान मिला।उस समय वर्ण व्यवस्था के साथ ही चलती थी,संस्कार व्यवस्था।
16 संस्कार ,जिस में जन्म से ले कर मर्त्य पर्यान्त सभी संस्कार जुड़े थे,इन सभी का संचालन का कार्य ब्राह्मण को था,क्योंकि संस्कार विधा के लिए वेद पढ़ने जरूरी थे।
वेद पाठन ब्राह्मण का कार्य था।
ब्राह्मण को याचन हेतु मिली गयी दक्षिणा से संतुष्ट रहना होता था।
संतोष और ईश्वर भक्ति ही उनकी पहचान थी।
माँगना धर्म के विरुद्ध था।
इसलिए हर वर्ग का व्यक्ति,जो समाज का हिस्सा था,श्रद्धा से हर कार्य मे प्रथम भाग ब्राह्मण को दे उसे सन्तुष्ट करते था।
भगवान की भक्ति और चिंतन में लीन रहने के कारण,धरती पर ईश्वर को खुश करने हेतु,व्यक्ति ब्राह्मण को ही साधक मानते थे।

अपितु वर्ण व्यवस्था की हानि से जहाँ सभी वर्ग के नीति और कार्यो में हस्तक्षेप हुआ।सभी व्यवस्था गड़बड़ा गयी।
अब व्यक्ति किसी वर्ण और कार्य के बंधन से मुक्त हो अपनी रुचि अनुसार कार्य करने लगे।
संस्कारो का पतन हो गया,सभी व्यवस्था क्षीण हो गयी।
ब्राह्मण को भोजन इसलिए कराया जाता था,क्योंकि उस की निज आय का कोई जरिया नही था।
वैवाहिक कार्य मे भी नियमानुसार चार महीने का निषेध था।
तो इन चार मास में जब कोई भी शुभ कार्य नही किया जाता।
तो उस की आय का जरिया सिर्फ चढ़ावा या दक्षिणा ही थी।
म्रत्यु के जो भी संस्कार होते हैं वो अलग ब्राह्मण करवाते थे,क्योंकि उस की अलग विधा और नियम होते थे।
तो जो शुभ कार्य कराने वाले ब्राह्मण होते थे,वो इन चार महीने को आप की भाषा मे वेरोजगार समझ या बोल सकते है।
अब जो शिक्षित वर्ग किसी गरीब को खाना खिला दो,श्राद्ध करने से बेहतर है,ऐसी सोच रखते हैं।
वो इस लेख को गौर से पढ़े और फिर सोचे कि शास्त्रों में जो भी वर्णनं है, उस के पीछे बहुत गहरे राज और बहुत सोच विचार कर ही बनाये गए हैं।
अपने घर के पितर को अगर हम एक दिन भोज नही दे सकते तो क्या हम सही कर रहे हैं।
म्रत्यु जितना शाश्वत सच है, शास्त्र और पुराण भी उतना ही सत्य है।
हम ये ही संस्कार अपनी पीढी को ट्रांसफर कर रहे हैं।
तो अपनी म्रत्यु के पश्चात का सीन अभी से सोच कर चले।
उतना ही पाश्चात्य को अपनाएं जितना कि हितकर हो,बिना सोचे और जाने किया गया अनुसरण गति को नही दुर्गति को देता हैं।

संध्या चतुर्वेदी
मथुरा उप

Language: Hindi
Tag: लेख
8 Likes · 451 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

"गौरतलब"
Dr. Kishan tandon kranti
बेकरार
बेकरार
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
कल जब होंगे दूर होकर विदा
कल जब होंगे दूर होकर विदा
gurudeenverma198
😃अकारण😃
😃अकारण😃
*प्रणय प्रभात*
वो हमें भूल ही नहीं सकता
वो हमें भूल ही नहीं सकता
Dr fauzia Naseem shad
पूरी उम्र बस एक कीमत है !
पूरी उम्र बस एक कीमत है !
पूर्वार्थ
स्वयं पर नियंत्रण कर विजय प्राप्त करने वाला व्यक्ति उस व्यक्
स्वयं पर नियंत्रण कर विजय प्राप्त करने वाला व्यक्ति उस व्यक्
Paras Nath Jha
नियम
नियम
Ajay Mishra
सर्वप्रिय श्री अख्तर अली खाँ
सर्वप्रिय श्री अख्तर अली खाँ
Ravi Prakash
कलमबाज
कलमबाज
Mangilal 713
आइने को कोसकर, व्यर्थ दे रहे तूल.
आइने को कोसकर, व्यर्थ दे रहे तूल.
RAMESH SHARMA
ऐ सितारों, मैंने कहाँ तुमसे आसमान माँगा था ।
ऐ सितारों, मैंने कहाँ तुमसे आसमान माँगा था ।
sushil sarna
दीवारों के कान में
दीवारों के कान में
Suryakant Dwivedi
* आख़िर भय क्यों ? *
* आख़िर भय क्यों ? *
भूरचन्द जयपाल
आँसू
आँसू
शशि कांत श्रीवास्तव
श्रीराम चाहिए
श्रीराम चाहिए
Ashok Sharma
3021.*पूर्णिका*
3021.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
सनातन परम सत्य, पुनर्जन्म l
सनातन परम सत्य, पुनर्जन्म l
अरविन्द व्यास
” पोक ” टैग ” हाईलाइट”
” पोक ” टैग ” हाईलाइट”
DrLakshman Jha Parimal
ख़्वाहिशें अपनी-अपनी, मंज़िलें अपनी-अपनी--
ख़्वाहिशें अपनी-अपनी, मंज़िलें अपनी-अपनी--
Shreedhar
तेरा साथ है कितना प्यारा
तेरा साथ है कितना प्यारा
Mamta Rani
हकीकत
हकीकत
P S Dhami
दीवारें
दीवारें
Shashi Mahajan
आसमां का वजूद यूं जमीं से है,
आसमां का वजूद यूं जमीं से है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मुक्ति और बंधन: समझें दोनों के बीच का अंतर। ~ रविकेश झा
मुक्ति और बंधन: समझें दोनों के बीच का अंतर। ~ रविकेश झा
Ravikesh Jha
नव वर्ष हमारे आए हैं
नव वर्ष हमारे आए हैं
Er.Navaneet R Shandily
जाल मोहमाया का
जाल मोहमाया का
Rekha khichi
छाले
छाले
डॉ. शिव लहरी
"बेबसी" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
ग़म भूल जाइए,होली में अबकी बार
ग़म भूल जाइए,होली में अबकी बार
Shweta Soni
Loading...