"बेबसी" ग़ज़ल
शब हरेक, उसके नाम होती है,
नींद मेरी, हराम होती है।
उसकी निकहत, से भर गया झोंका,
क्यूँ हवा, एहतिशाम होती है।
जब भी आता है मिरे ख़्वाबों में,
सोच क्यूँ बेलगाम होती है l
मेरी आवारगी हुई ग़ायब,
चाह, उसपे क़याम होती है।
दिल से होता है फ़ैसला दिल का,
बेबसी, नज़रे-आम होती है।
चूम लेता हूँ उसकी यादों को,
खूबसूरत सी शाम होती है l
अब भी “आशा” है, वस्ल की उससे,
ज़ीस्त यूँ ही, तमाम होती है..!
निकहत # ख़ुशबू, fragrance
एहतिशाम # गौरव पूर्ण, filled with grandeur
क़याम # ठहर जाना, to stay
वस्ल # मिलन, meeting
ज़ीस्त # जीवन, life
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