बाल कविता

वर्षा ऋतु
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वर्षा ऋतु है बड़ी सुहानी,
चारों ओर बरसता पानी।
कोयल मोर पपीहा बोलें,
मानो स्वर में मिश्री घोलें।।
चमचम चपला है चमक रही,
हैं गरज रहे काले बादल।
घन-घोर घटा घिर आई है,
चहुॅं ओर फुदकते हैं दादुर।।
तड़-तड़ पड़-पड़ कड़-कड़ कड़-कड़
तरूऔं पर गिरती हैं बूॅंदें।
सब ताल कूप नाले नदियाॅं,
हैं भाग रहे आंखें मूॅंदे।।
भीग रहे सब खेत बाग वन,
भीग रहे सब घर आंगन।
यह सुखद मनोहर दृश्य देख,
है भीग रहा मेरा तन मन।।
है राज आज मेरा मन भी,
पुलकित पुलकित हो जाता है।
कोमल कोमल ह्रदयातल पर
जब प्रेमाजल बरसाता है
~राजकुमार पाल (राज) ✍🏻
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित)