Lekh
कुछ लोग कहते है –
हमे अपनी बात वहा रखनी चाहिये। जहा उसकी कोई
वैल्यू हो। जहा इज्जत ना हो वहा बेइज्जती कराने से
कोई फायदा नही। कभी-कभी कुछ वस्तुऐं माँगने से नही मिलती और कभी-कभी बिना माँगे ही बहुत कुछ मिल जाता है। एक समय ऐसा आता है। हर वस्तु से मन भरने लगता है। तब हर वस्तु व्यर्थ लगने लगती है।
और कभी-कभी संसार की हर वस्तु अच्छी लगने लगती है।
यह हमारी मन स्थिति है। जो बदलती रहती है। जो कभी एक जैसी नही रहती है।
आज हम जिस चीज के पीछे दौड रहे है। वो किसी और के पीछे भाग रहा है। यह एक प्रक्रिया है जो निरन्तर चलती रहती है । मैं हमेशा शोचता हूँ कि मैं दूसरों के बारे मे इतना शोचता हूँ और कोई मेरे बारे में जरा सा भी नही शोचता है। मैं हमेशा इस बात पर जोर देता रहा पर यह नही पहचान पाया कि जो मेरे बारे में ज्यादा शोचता है। मैं उसे नही पहचान पाया। वो हमेशा मेरे सामने ही रहता है पर मैं ही उसे कभी देख नही
पाता हूँ या मैं उसका अहसास नही कर पाता हूँ या उसे पहचान कर भी नजरान्दाज करता रहता हूँ और दोष उस खुदा को देता रहा कि मेरे लिये कुछ नही है इस दुनिया में ,फिर भी मेैं किसी वस्तु को पाकर अप्रसन्न ही रहता हूँ।
कभी- कभी कुछ चीजे हमारे सामने होती है पर उन्हे हम पहचान या देख नही पाते है या देखते हुये भी हम पहचान नही पाते है। उसी दौरान हम जिन्दगी का एक अहम हिस्सा छोड देते है। या हम कह सकते है एक अहम हिस्सा खो देते है । जिसे जिन्दगी में पाना नामुमकिन सा हो जाता है। जिससे जिन्दगी के मायने बदल जाते है और जिन्दगी का एक अलग ही पहलू सामने आता है। जिसे हम आसानी से सिर्फ जीना चाहते है ,समझना नही चाहते है। लेकिन जो दूसरा पहलू सामने आना था। उससे तो हम अनभिज्ञ ही रह जाते है।जिससे हम अनभिज्ञ रह जाते है। जिन्दगी का एक अहम पहलू होता है । जिससे जिन्दगी और जीवन मे अनेक पहलू खुलने होते है।
इन्सान चाहता तो बहुत कुछ है। लेकिन सब कुछ इन्सान के हाथ मे नही होता है। इंसान चाहे लाख कोशिश करे होना तो वही होता है जो होना होता है।
जो वो खुदा चाहता है। हमारे हाथों मे कुछ नही होता है। हम तो झूठे भ्रम मे है कि हम जो भी कुछ कार्य कर रहे है । अपनी मर्जी से कर रहे है। कि हम जो महनत कर रहे है या कोई भी परिश्रम कर रहे है यह हमारी महनत या परिश्रम का फल है । यह हम मानते है।
ये हमे नही पता होता है कि कब कोई भी कार्य हम अपनी मर्जी से करते है या उस खुदा की मर्जी से करते है। यह हमे नही पता होता है । वैसे हम कार्य खुद की मर्जी से कर रहे यह मानकर चल रहे होते है लेकिन किसी कार्य मे महनत करने पर भी विफल हो जाने पर हम किस्मत को उसका दोष देते है । जो हमे पता नही है रियल मे कि वह खुद का दोष है या किस्मत में ऐसा होना पहले ही लिखा होता है जिन्दगी में यह समझ पाना मुश्किल है। जो हमारी किस्मत मे नही होता है वह किसी ना किसी बहाने से हमारे हाथों से निकल ही जाता है। ऐसे बहुत उदाहरण हमें जिन्दगी मे मिलते है।
मैं कहूँ कि आप इस बात को कैसे स्पष्ट करेगे। लेकिन कुछ सोच ऐसी होती है । जो दूसरों को नीचा दिखाने के लिये । हम उस बात का विरोध तो कर देते है ।जबकि हमे पता होता है कि वह बात गलत है यानि हमे गलत- सही का पता होता है। लेकिन उसे मानने के लिये हम तैयार नही होते है। और तैयार क्यो नहीहोते है?
क्योकि हमारा स्वाभिमान जो हमारा अहंकार होता है
जो बार-बार हमारे सामने आता रहता है। जिसके सामने आने से हमे अन्य कोई वस्तु नजर नही आती है। हम खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने मे लगे रहते है या अपनी बात को सही साबित करने में लगे रहते है।
हम कभी-कभी किसी वस्तु को पाने की लाख कोशिश करते है।ओर आखिर में हारकर या किसी भी कारण वस हम यह मान लेते है कि वह वस्तु हमारी किस्मत मे नही थी । इस लिये हमे मिली नही। ना मिलने पर हम उसका सम्बन्ध किस्मत से जोड देते है। लेकिन वह हम हमारी हार विश्वास मे कमी के कारण उसे अमान्य मान लेते है। अगर हम हार के बाद दूबारा कोशिश करते तो श्याद वह हमे मिल जाता। लेकिन यह सम्भव नही की वह हमे एक ही कोशिश मे मिल जाये।हो सकता है दूसरू कोशिश मे मिले ।या हमे मिले ही ना यह जरूरी नही होता है कि हमारी लाख केशिशो के बाद वह हमे मिल जाये । क्या पता उससे ज्यादा कोशिश करनी पडे।
लेकिन यह थींक(सोच) निरन्तर चलती रहती है ।जो निश्चित नही होती है। कि वो मिले जिसके लिये हम महनत कर रहे है । लेकिन कुछ वस्तु बिना चाहे बिना माँगे बिना महनत के हमे मिल जाती है। या मिलती है।और बार – बार मिलती है। हमारे ना चाहते हुये भी मिलती है।
Swami ganganiya