किताब।
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शायद आपसे बाकी है कोई,
पिछले जन्म का हिसाब,
इसीलिए आपको भेजता हूं,
मैं अक्सर कोई किताब,
ना गिनिए कि अब तक आपको,
मैंने दी हैं कितनी किताब,
निस्वार्थ भाव का दुनिया में,
कहां होता है कोई जवाब,
आपके प्रति मेरे सम्मान का,
प्रतीक है हर किताब,
जब तक दे सकूंगा तब तक,
यूं ही आती रहेगी किताब,
अब देता हूं तो रख लीजिए,
किताब ही तो है जनाब।
कवि- अंबर श्रीवास्तव।