II छलावा II
हार जीत और धन दौलत,सब यार छलावा है l
क्या मतलब,जब,सब का एक दिन, वहीं बुलावा है ll
चिकनी चुपड़ी सुंदर सूरत, निशदिन ढलती है l
रोज ही देखे,पकड़ न पाए,बड़ा भुलावा है ll
कितने आए चले गए, कुछ चलने को तैयार l
फिर भी कितना तामझाम ,और बड़ा दिखावा है ll
कितना सुंदर तन मन लेकर ,जग में आया था l
कुछ जोड़ा कुछ काटा छांटा ,अजब पहनावा है ll
भूली बिसरी सब सच्ची बातें ,दुनिया का प्रपंच रचा l
चढ़ा नाक तक पानी अब तो ,ना फिर भी पछतावा है ll
पुण्य पाप की गठरी ढोता, अब कितना चल पाएगा l
सब उसे चढ़ाकर मस्त हुआ मन, यही चढ़ावा है ll
संजय सिंह ‘सलिल’
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश l