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9 Jan 2022 · 14 min read

सहकारी युग (हिंदी साप्ताहिक) 14 वाँ वर्ष 【1972 – 73 】

सहकारी युग (हिंदी साप्ताहिक),रामपुर {उ.प्र} का 14 वाँ वर्ष 【1972 – 73 】
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समीक्षक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उ. प्र.) मो. 99976 15451
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लेखनी में आग का विद्यमान होना ही उसे ऊर्जस्वी बनाता है । यह आग जब तक जलती है ,कलम सोए समाज-राष्ट्र के मन मस्तिष्क को जगाती है । लेखनी जो आग को अपने अंतर्मन में आत्मसात करती है ,वह लेखनी निस्तेज शब्द बन कर नहीं अपितु हथियार बन कर बात करती है। सहकारी युग की लेखनी का प्राण तत्व उसका अग्निधर्मा होना ही है ।
26 पृष्ठीय स्वतंत्रता दिवस विशेषांक में पत्र ने _स्वतंत्रता, रजत जयंती और नवयुवक_ शीर्षक से संपादकीय में कहा कि “अब जवान रगों के सर्द पड़ गए खून में उच्च क्षमता आनी चाहिए। हम यह समझते हैं कि आज का समय आजादी की लड़ाई के समय से किसी कदर भी कम महत्वपूर्ण या कम गंभीर नहीं है । वह मुक्ति-अभियान का युग था तो आज मुक्ति को जीवित रखने के लिए संघर्ष का युग है और यह संघर्ष करना होगा उन तत्वों के विरुद्ध जिन्होंने देश में नैतिकता की हत्या की है । जिन्होंने देश के स्वाभिमान को कलंकित किया है । स्वतंत्रता के पश्चात राजनीति में प्रविष्ट गुंडों ने हमें हर दृष्टि से निर्बल बना दिया । हमसे न्याय छिन गया । प्रशासन हमारा शोषक बन गया और इस प्रकार सर्वदूर दिखाई देने लगी असुरक्षा ही असुरक्षा ।”
समाचारों की रिपोर्ट का साहित्यीकरण सहकारी युग की विशेषता है। 19 अगस्त 1972 की रात्रि में ज्ञान मंदिर में काव्य गोष्ठी समाचार की निम्न काव्यमय पंक्तियां ध्यान आकृष्ट करती हैं:-
” यद्यपि गोष्टी का प्रारंभ उमड़ते-घुमड़ते बादलों की गर्जन के समय हुआ था किंतु गगन तारिकाओं को भी गोष्ठी का आनंद लेना था अस्तु वे बड़े उत्साह से आकाश पर विराजमान हो उठे ।” (22 अगस्त 1972)
कांग्रेसी नेता श्री शालिग्राम जायसवाल द्वारा उत्तर प्रदेश में चलाए गए भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता विरोधी अभियान का समर्थन करते हुए पत्र ने रामपुर के संदर्भ में सांप्रदायिक तत्वों की रीति-नीतियों की खुलकर आलोचना की और कामना की कि जनतंत्र और समाजवाद के हित की दृष्टि से उत्तर प्रदेश के संपूर्ण जिले अपने अपने क्षेत्र की उन गतिविधियों को अवश्य प्रकाश में लाएं जिन से समाज का अहित हो रहा है ।
सहकारी युग ने आश्चर्य व्यक्त किया कि पंडित कमलापति त्रिपाठी का प्रशासन उन को दूध पिला रहा है जिन्होंने भारत को बांग्लादेश में आक्रांता कहना, शेख मुजीब को गालियाँ देना लिखा है । “(5 सितंबर 1972)
एक लंबे संपादकीय में सहकारी युग की राय है कि अध्यापकों का राजनीति से दूर रहना न्याय संगत नहीं है । आज हमारे देश की राजनीति में चरित्र और मानव मूल्यों के अभाव का एक मुख्य कारण यह भी है कि उसके संचालन में शिक्षकों का योग नहीं है । चाणक्य और रामदास को
स्मरण करते हुए पत्र ने प्रश्न किया कि चंद्रगुप्त और शिवाजी ने जिन आधारों पर राज्य कार्य किए उन पर इतिहासकार को गौरव क्यों है ? और गुरुओं और शिष्यों के प्रति नतमस्तक क्यों होता है भारत में गुरु भक्ति की महिमा सर्वविदित है किंतु आज उस गौरवपूर्ण स्थिति में परिवर्तन लाया जा रहा है जिसमें गुरु को धीरे-धीरे महत्व हीन ही नहीं बनाया जा रहा अपितु सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से दुर्बल भी। स्वतंत्रता के पश्चात राजनीतिक नेताओं ने समाज के मस्तिष्क की उपेक्षा करना आरंभ किया और इस वर्ग को विभिन्न समस्याओं में इस हद तक उलझा दिया कि वह राजनीति के विषय में न कुछ सोचे और न कहे । यही कारण है कि राजनीति के क्षेत्र में शिक्षा विहीन एवं संस्कार-विहीन व्यक्ति ऊपर उठते गए और फिर हम जानते हैं कि देश से वह मूल्य विदा होने लगे जिन्हें हम अपनी आत्मा समझते हैं।”( 14 सितंबर 1972 )
शिक्षा संस्थाओं के चुनाव छात्रों को क्या देते हैं ? संपादकीय मत व्यक्त करता है कि इन चुनावों में राजनीतिक दलों ने भरपूर भाग लेकर विद्याध्ययन करने वाले छात्रों को शिक्षा-क्रम से किसी दूर हद तक दूर करके राष्ट्र की क्षति की । राजनीति का जहर किस तरह छात्रों को गुमराह कर रहा है ,पत्र ने इसकी गंभीर समीक्षा की और कहा कि जिस तरह अन्य चुनावों में सांप्रदायिकता, जातिवाद और व्यक्तिगत संबंधों को प्रोत्साहन तथा प्रत्याशी की योग्यता और क्षमता की उपेक्षा होती है ,वही दृश्य शिक्षा संस्थाओं के चुनावों में भी उपस्थित होते हैं, जिससे छात्रों को वास्तविक जनतंत्र का प्रशिक्षण नहीं मिल पाता ।” ( 25 सितंबर 1972)
रामपुर के मूल निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री हाफिज अनवर उल नबी के व्यक्तित्व और कार्यों पर एक पृष्ठ का विशेष महत्व का लेख 25 सितंबर 1972 के अंक को अविस्मरणीय बनाता है। रामपुर रियासत में आजादी के तप के तेज से सराबोर उपरोक्त लेख का शब्द-शब्द वंदनीय बन गया है।
4 अक्टूबर 1972 को अपने संपादकीय में पत्र ने लिखा कि गांधी को अपने से संबद्ध मानने वाली महान संस्थाएं जो अब कांग्रेस और संगठन कांग्रेस के रूप में विभक्त हो चुकी हैं महात्मा गांधी से बहुत दूर ही नहीं तो उनके द्वारा प्रतिपादित आदर्शों और सिद्धांतों की हत्या में” काफी हद तक संलग्न रही हैं । राजनीति और जन सेवा के टूटते रिश्ते पर दृष्टिपात करते हुए पत्र ने लिखा कि “यदि जगह-जगह की कांग्रेस कमेटियों के उन नेताओं की सूची तैयार की जाए जो बिना किसी पद के जन सेवा के उद्देश्य से कांग्रेस में रहना चाहते हैं तो हम यह समझते हैं कि शायद सूचियाँ कोरी रह जाएँगी ।”
सहकारी युग के हृदय में पत्रकारिता के क्षेत्र को पवित्र मानने और बनाने की भावनाएं सदा हिलोरें लेती रहीं। उसे सदा इस बात पर क्रोध आता रहा कि पत्र जगत में ऐसे तत्व काफी बड़ी संख्या में घुस आए हैं जो सामाजिक अपराधी कहे जाते हैं अवांछनीय तथा अराष्ट्रीय भी माने जाते हैं। इनके पास न कलम है न ज्ञान और न पत्रकार का मस्तिष्क । यही कारण है कि ब्लैकमेलिंग और पीली पत्रकारिता को प्रश्रय और प्रोत्साहन मिल रहा है।” (संपादकीय 14 अक्टूबर 1972)
रामपुर में कांग्रेस कैसे बनी ? सहकारी युग ने लिखा है कि यह बात एक विजयदशमी के अवसर की है जब स्वयं नवाब सैयद रजा अली खान ने कोसी मंदिर पर दशहरे के समारोह का आयोजन कराया। नवाब ने इस आयोजन में स्वयं भी आने की घोषणा की । एक विशाल पंडाल बनाया गया, जिसमें दरबारीगण तथा जनता के लोग भारी संख्या में उपस्थित थे। पंडित केशव दत्त उस समय हिंदू सभा के नेता थे किंतु नवाब के कृपा पात्र थे । …नवाब ने आसन ग्रहण किया ….और नवाब रामपुर ने पंडित जी के मस्तक पर कांग्रेस के नेतृत्व का मुकुट रख दिया ।” (संपादकीय 21 अक्टूबर 1972)
भेंट वार्ता करने में सहकारी युग को विशेष आनंद आता रहा । प्रमाण है 28 अक्टूबर 1972 अंक में पत्र द्वारा कांग्रेस के युवा नेता पंडित माया पति त्रिपाठी से लिया गया इंटरव्यू। प्रशासन में राजनीति का हस्तक्षेप बढ़ा है और अपराधों को जाने दीजिए अन्यथा प्रशासन ने राजनीति के समक्ष अपना मस्तक झुका दिया है और इसी क्षेत्र में रूहेलखंड के भूतपूर्व आयुक्त स्वर्गीय श्री कृष्ण शर्मा के अनुसार दोनों ही एक दूसरे के माध्यम से एक्सप्लॉइटेशन में संलग्न हैं। सहकारी युग लिखता है कि आज जो व्यक्ति साधन संपन्न है वह प्रशासन और राजनीति को घूस देकर और अधिक संपन्नता प्राप्त कर रहे हैं तथा साधनहीनों का बहुमत उक्त दोनों वर्गों के अनैतिक करार के कारण यातनाओं की चक्की में पिसता जा रहा है। पत्र आह्वान करता है कि प्रशासन में जहां-जहां ईमानदारी शेष रह गई है वह अपनी शिक्षा और योग्यता की लाज बचाने के लिए संगठित होकर इस देश की मान मर्यादा की रक्षा करें।” (संपादकीय 28 अक्टूबर 1972)
राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय की स्थापना का रामपुर में शिक्षा क्षेत्र की महत्वपूर्ण घटना के रूप में सहकारी युग ने निम्न शब्दों में उल्लेख किया :- ” गैर-सरकारी शिक्षा क्षेत्र में प्रगति के एकमेव स्तंभ श्री राम प्रकाश सर्राफ के प्रयत्नों के परिणाम स्वरुप निर्मित विभिन्न शिक्षा संस्थाओं की संख्या में एक और गौरवमई कड़ी राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय का उद्घाटन प्रसिद्ध गीताविद् श्री दीनानाथ दिनेश द्वारा किया गया। श्री दिनेश ने श्री राम प्रकाश सर्राफ द्वारा संपादित शिक्षा प्रसार के कार्यों की भूरि -भूरि प्रशंसा की और आशा व्यक्त की कि आगामी कुछ वर्षों में रामपुर का वातावरण पूर्णतया गीतामय एवं ज्ञानमय बन सकेगा।”( 11 नवंबर 1972 )
उत्तर प्रदेश के पंचायत राज मंत्री श्री बलदेव सिंह आर्य का सहकारी युग से साक्षात्कार 26 नवंबर 1972 के अंक में छपा है । श्री आर्य के रामपुर आगमन के उद्देश्य पर संपादकीय टिप्पणी है कि यदि श्री आर्य इस बात का प्रयत्न करें कि रामपुर में कांग्रेस का नेतृत्व उन शक्तियों के हाथों में रहे जो वास्तव में कांग्रेस के सिद्धांतों और कार्यक्रमों में आस्था रखती हो तो निश्चय ही यह हर्ष की बात होगी। पत्र के अनुसार तो “राज महलों में कैद रामपुर की कांग्रेस न जनता से संबंधित है न इंदिरा से और न समाज से ।”
अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक दिवस पर रजा लाइब्रेरी के विशाल हॉल में एक छोटी-सी गोष्ठी का आयोजन रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय द्वारा पद्मश्री अर्शी साहब के सानिध्य में हुआ । सहकारी युग ने इसकी रिपोर्ट मनोयोग से लिखी । इसी अंक के संपादकीय भाग में पुस्तकों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए पत्र ने प्रसन्नता व्यक्त की। पुस्तकें किसी देश की सभ्यता और संस्कृति को संजो कर रखने का माध्यम हैं। “आज जबकि अंतरराष्ट्रीय पुस्तक वर्ष का स्थान-स्थान पर आयोजन हो रहा है ,ऐसा प्रतीत होता है मानव सभ्यता और संस्कृति की ओर हम आकृष्ट हो रहे हैं। ” पत्र को किंतु खेद है कि “आज जो कुछ पुस्तकों में सुरक्षित है और उसमें जिन आदर्शों और सिद्धांतों की स्थापना है ,वह व्यवहार में नहीं है।” (29 दिसंबर 1972
सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की ही सत्ता लोलुपता पर सहकारी युग ने सदा तीव्र प्रहार किया है और उजागर किया है उस राजनीतिक नग्नता को जिसके कारण भारतीय जनतंत्र जनता के सुख-दुख और जन-जन के जीवन से बहुत दूर होता जा रहा है । 18 पृष्ठीय गणतंत्र दिवस विशेषांक में पत्र ने लिखा:- “यह भारत का दुर्भाग्य है कि शताब्दियों तक परतंत्रता में जकड़ी भारतीय जनता ने जिस वर्ग को राजनीतिक नेतृत्व सौंपा उसके एक बहुत बड़े भाग ने जनतंत्र के पोषण और जनता के संरक्षण के स्थान पर अपनी व्यक्तिगत संपन्नता और व्यक्तिगत राजनीतिक स्थायित्व पर ही अधिकांश समय व्यतीत किया । इस विषय में भारत के विरोधी दल भी अपवाद नहीं माने जा सकते क्योंकि उनकी आलोचनाएं, प्रदर्शन ,जनसभाएं और अन्य-अन्य कार्यक्रम सत्ता प्राप्ति का लक्ष्य सामने रखकर आयोजित किए जाते हैं और जनजागृति, जनकल्याण एवं जनसंपर्क से यह भी प्रायः असंबद्ध रहते हैं। संपूर्ण राष्ट्र-जीवन में बढ़ रही अव्यवस्था और गिरते नैतिक स्तर पर पत्र ने बार-बार चिंता व्यक्त की है। उसने प्रश्न किया है कि क्या कोई क्षेत्र आज ऐसा दिखाई देता है जहां इंसानी कदरों की पूजा होती हो ,कानून की हिफाजत होती हो और सही मायनों में समाजवाद और जम्हूरियत पनप रहे हों। शिक्षा क्षेत्र में अनुत्तरदाई छात्र और अध्यापक पत्र को कँपा देते हैं। वह आह्वान करता है कि समाज का उत्तरदाई जागरूक वर्ग परिवर्तन के लिए सचेत हो क्योंकि स्थिति यह आ गई है कि प्रशासन के क्षेत्र में पैसे से काम होता है, न्यायालयों में न्याय लेने के लिए पैसा खर्च करना पड़ता है पुलिस से शराफत काँपती है ,मंदिरों में इलेक्शन के गठबंधन होते हैं।” (संपादकीय 28 फरवरी 1973 )
जनता और प्रशासन के संबंधों पर सहकारी युग की राय यह रही कि जिस मात्रा में जनता जागरूक होगी ,उतना ही प्रशासन उपयोगी और स्वस्थ होगा किंतु जनता की सुप्त अवस्था के फलस्वरूप शासन का उच्छ्रंखल होना स्वाभाविक है। उसके मतानुसार देश में सर्वोच्च शिक्षा प्राप्त वर्ग यदि कहीं पर है तो वह प्रशासन में है और यदि उसने अशिक्षित अविकसित जनता को जागरूक करने की बजाय केवल उसका शोषण और उस पर शासन ही किया तो यह देश हित में नहीं होगा।”( संपादकीय 8 मार्च 1973 )
20 मार्च 1973 को अपने संपादकीय में सहकारी युग ने लिखा कि “आज जनसंघ के नेतृत्व के सामने केवल कुर्सी है । वह जनसंपर्क को नितांत आवश्यक समझकर केवल सरकार की आलोचना के द्वारा ही सत्ता हस्तगत करने के लिए हर दिन अपना केसरी हृदय बदलता चला जा रहा है।” संयोग देखिए कि उपरोक्त पंक्तियों के लिखे जाने के मात्र चार वर्ष बाद सचमुच भारतीय जनसंघ का अपना केसरी ध्वज उसका स्वयं का नहीं रहा । प्रोफेसर बलराज मधोक के जनसंघ से निष्कासन को पत्र ने एक ऐसे व्यक्ति का निष्कासन बताया जिसके विचारों का स्थाई प्रतिबिंब राजनीति को दूर से देखने वाली जनता के मस्तिष्क के ऊपर भी अंकित है ।
रामपुर के कांग्रेसी नेताओं को सहकारी युग ने उनकी अकर्मण्यता के लिए हजार बार बार ललकारा है और कहा है कि अब तक उन्होंने रामपुर पर शासन किया, उसका कारण उनकी योग्यता ,त्याग ,साधना या आदर्शवादिता नहीं थी बल्कि रामपुर की जनता में गुलामाना जहनियत और उनका पिछड़ापन कायम रहना था । अखबार सत्तापक्ष के नेताओं को याद दिलाता है कि रामपुर आज भी मानसिक ,राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से गुलाम है। पिछड़ा है । यहां समाजवाद का दम घुट रहा है, इंसानियत सिसक रही है और जनतंत्रात्मक व्यवस्था में प्रवेश के मार्ग बंद कर दिए गए हैं ।”( संपादकीय 25 मार्च 1973)
भयभीत रामपुरी के छद्म नाम से महेंद्र प्रसाद गुप्त पत्रकारिता क्षेत्र के गिरते स्तर पर अनेक अंकों में काफी कुछ लिखते रहे। यह लेख ,वार्तालाप ,कहानी ,व्यंग्य का मिलाजुला पुट लिए हुए होते थे । अनेक पत्रकारों द्वारा पत्रकारिता-धर्म का शीलभंग करने पर लेखक को जो पीड़ा होती थी ,वही इन लेखों में उजागर होती रही है । “रामपुर में पत्रकार को पचास रुपए देकर जो चाहे छपवा लो-यह कथन है जिले के एक वरिष्ठ अधिकारी का।” ऐसे शीर्षकों से सहकारी युग ने अपनी वेदना को निरंतर अभिव्यक्ति दी।” (24 अप्रैल 1973 )
सहकारी युग अखबार-भर नहीं रहा । वह फोरम बन गया जनता के दुख दर्द को मुखर करने का । केवल लिखकर नहीं दफ्तरों से निकलकर और पैदल चलकर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री अकबर अली खां को बताने के लिए फोरम के 10-12 सदस्यों ने आवाज उठाई कि रामपुर जिला आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से राज्य का सर्वाधिक पिछड़ा जिला है जहां गरीबी के कारण 70 वर्ष के बूढ़े और 15 वर्ष के किशोर विवश होकर रिक्शा चलाते हैं। शिक्षा के प्रश्न पर अभिभावक की उपेक्षा और प्रशासन की भ्रष्टाचारिता पर उसने कहा कि प्राइमरी पाठशालाओं के भवन निर्माण के संबंध में समाज मौन रहा है और सरकारी अधिकारी प्राइमरी स्कूलों के लिए मिलने वाली ग्रांट अनुदान राशि का भक्षण करते रहे हैं । इतना ही नहीं अनुशासनहीनता को पोषण सरकार के बड़े-बड़े अधिकारीगण एवं राजनीतिक नेता दे रहे हैं।”( संपादकीय 30 अप्रैल 1973)
कांग्रेस पार्टी के युवा तुर्क श्री कृष्ण कांत और चंद्रशेखर को सहकारी युग ने भूरि-भूरि बधाई उस समय दी जब इन दोनों संसद सदस्यों ने अपनी ही पार्टी की सरकार के एक मंत्री श्री एल.एन. मिश्रा को एक व्यापार संस्थान से संबंधित फाइलों के गायब हो जाने के लिए जिम्मेदार ठहराया। उसने कहा कि इन दोनों नवयुवकों ने जनहित की बात कहने में उन दलगत मान्यताओं को लात मार दी जिन्हें कायम रखने के लिए समाजवादी कांग्रेस का बुर्जुआ क्लास हर तरह की आपाधापी, अनियमितता और भ्रष्टाचार को प्रश्रय दे रहा है । ” (संपादकीय 14 मई 1973)
व्यापारी वर्ग मुनाफाखोरी का परित्याग करें और आवश्यक जीवन – उपयोगी वस्तुओं का कृत्रिम अभाव न करें- सहकारी युग ने आह्वान किया । राजनीति और व्यापार के अपवित्र गठबंधन पर दृष्टिपात करते हुए काव्यात्मक भाषा में उसने कहा कि “गरीब का खून शाही दरवाजे तक पहुंचाने के लिए व्यापारी वर्ग एक पाइप का काम करता था । इतना ही नहीं आज भी प्रशासन का बहुत बड़ा हिस्सा व्यापारी वर्ग के साथ है। उनकी गैर कानूनी साजिशों को संरक्षण देकर पैसा कमा रहा है । इसलिए सहकारी युग की राय में जहां-जहां व्यापारी या अधिकारी शोषण की पुरानी नीतियों का पल्ला पकड़े हुए हैं ,वहां आंदोलन नितांत आवश्यक है।”( संपादकीय 24 मई 1973)
रामपुर नुमाइश से कवि सम्मेलन सुन कर लौटे सहकारी युग ने अभिव्यक्ति दी कि “कविता के माध्यम से स्थाई साहित्य के सृजन की परंपरा में जो व्यतिक्रम उत्पन्न हो रहा है ,वह चिंता का विषय है । “(24 मई 1973) यह हिंदी मंच पर छोटी मगर महत्वपूर्ण टिप्पणी है ।
रामपुर में श्री रघुवीर शरण दिवाकर के संयोजकत्व में गठित नागरिक परिषद की संघर्षपूर्ण गतिविधियों को पत्र ने अभिव्यक्ति दी और जनता की कठिनाइयों से जूझने वाले संगठन को जिसका कि सहयोग श्री शौकत अली खां आदि युवा नेता कर रहे थे पर्याप्त सहभागिता प्रदान किया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री गुरु जी के निधन पर सहकारी युग रो पड़ा। भरे हृदय से उसने धरती की इस पवित्र आत्मा का स्मरण किया और कहा कि 5 जून की रात्रि में रामकृष्ण परमहंस ,राम तीर्थ ,दयानंद, विवेकानंद ,गाँधी आदि की पवित्र श्रंखला में एक कड़ी और जुड़ गई । प्रातः स्मरणीय डॉ हेडगेवार ने भारत की महान ऋषि-मुनियों एवं पवित्र गंगा यमुना का भारत बनाए रखने के लिए संघ को जन्म दिया और उस संघ की आत्मा थे श्री गुरु जी ।श्री गुरु जी की महानता और निष्काम कर्म साधना के प्रति नतमस्तक सहकारी युग ने कहा कि “उन्होंने मात्र भाषण नहीं दिए किताबें नहीं लिखी बल्कि भारत के एक कोने से दूसरे कोने तक व्यक्ति-व्यक्ति को भारतीयता का प्रतीक बना डालने का अभूतपूर्व कार्य किया । “(6 जून 1973)
4 जून को आर्य समाज के नेता और ओजस्वी वक्ता श्री प्रकाशवीर शास्त्री आर्य समाज के वार्षिकोत्सव में रामपुर आए। सहकारी युग ने श्री शास्त्री के भाषण के पश्चात लिखा कि वह संगठन और वह आदरणीय व्यक्ति जिन्होंने धार्मिक आस्थाओं को सुदृढ़ बना कर मानवता को जीवित रखने का व्रत लिया तथा कार्य भी किया ,वह आज अपने मूल कार्य से विमुख होकर राजनीतिक सत्ता के प्रति आकृष्ट हैं।” (संपादकीय 16 जून 1973 )
राजनीति और प्रशासन के अपवित्र गठबंधन द्वारा जनता के हितों की उपेक्षा करके स्वार्थसिद्धि को प्रमुखता देता हुआ वातावरण जब सहकारी युग ने देखा तो निर्भय होकर उसने लेखनी उठाई कि प्रशासन के राजनीतिक अंग ने खुलकर भ्रष्टाचार की सीमाओं का उल्लंघन किया है और यह भी सत्य है कि प्रशासनिक यंत्र ने भ्रष्ट राजनीति के समक्ष अपना मस्तक नत किया ,घुटने टेके और इस प्रकार शिक्षा को बुरी तरह तिरस्कृत किया । पत्र ने आगे लिखा कि “आजादी के बाद जैसे-जैसे समय गुजरता गया, सत्ता के प्रशासनिक और राजनीतिक दोनों ही अंग जन-शोषण में भी पारंगत होते गए और आज कौन आगे है यह कहना कठिन है। “( संपादकीय 3 जुलाई 1973 )
भारत का बुद्धिजीवी अकर्मण्य, उदासीन और निरपेक्ष बना परिस्थितियों की भयावहता को मात्र दर्शक बना देख रहा है। जिस प्रकार एक अशिक्षित श्रमिक श्रम बेचकर अपना और अपने परिवार का पेट भरता है, हमारा बुद्धिजीवी भी ,सहकारी युग ने कहा ,अपनी विद्या ,योग्यता और मस्तिष्क के उपयोग से अपने भरण-पोषण की व्यवस्था करते हैं। पत्र ने लिखा कि स्वतंत्रता के पूर्व बुद्धिजीवियों में आग थी,तो आज देश में किए जाने वाले विनाश की ओर हम आंख उठाने के लिए भी तत्पर नहीं हैं। दरअसल इसीलिए अशिक्षित और कुबुद्धि युक्त राजनीति ने आज हर क्षेत्र में अपना भ्रष्ट आधिपत्य स्थापित कर लिया है। (संपादकीय 13 जुलाई 1973)
स्वतंत्र पार्टी के नेता श्री पीलू मोदी रामपुर आए । सहकारी युग ने उनका भाषण सुना । प्रश्न भी किए । विरोधी दल समाज से दूर रहकर वास्तविक समस्याओं पर केवल आलोचना की दृष्टि रखें तथा चुनावों के समय ही जनता के हित-चिंतन का नारा बुलंद करें ,सहकारी युग ने इस मानसिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाया ।”(संपादकीय 20 जुलाई 1973 )
केंद्रीय रेल मंत्री ने एक विशेष लहजे में संसद में जब यह कहा कि रेल सेवाओं में अल्पसंख्यकों को समुचित स्थान मिलेगा तो सहकारी युग ने इस युक्ति को खतरनाक बताते हुए कहा कि “इस से सांप्रदायिक मनोवृति को प्रश्रय मिल रहा है और भविष्य की अनेक आशंकाओं की प्रतिध्वनियां सुनाई दे रही हैं।” (संपादकीय 25 जुलाई 1973)
श्री शौकत अली खाँ एडवोकेट के संयोजकत्व में रामपुर के पिछड़ेपन को समाप्त कराने की जोरदार मुहिम शुरू हुई। डॉ जमीर की अध्यक्षता और श्री दिवाकर राही के संचालन में सभा में प्रायः सभी व्यवसायों और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने एक स्वर से केंद्र और राज्य सरकार द्वारा विगत 25 वर्षों में रामपुर के साथ किए गए सौतेली माँ के व्यवहार की भर्त्सना की और उसे अ-समाजवादी और जनतंत्र विरोधी बताया। ( 4 अगस्त 1973)
मुरादाबाद-बरेली जैसे जिलों को पिछड़ा और रामपुर को समुन्नत घोषित करने की वजह जन जागरूकता का अभाव और नेतृत्व की अकर्मण्यता बताते हुए पत्र ने शोक पूर्वक कहा कि “आज हम इतना असमर्थ हैं कि स्वयं को पिछड़ा घोषित कराने के योग्य भी नहीं रहे हैं और अगर यह स्थिति कायम रही तो भविष्य का अनुमान लगाया जा सकता है । “(संपादकीय 4 अगस्त 1973 )
जाहिर है जनता के आंदोलनों को पर्याप्त सहयोग और प्रोत्साहन देना सहकारी युग की नीति थी। उसका स्वर जनाभिमुख रहा और जनता के दुख दर्द तकलीफों को मुखर करने में पत्र ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । अनेक जन-आंदोलनों का श्रेय यद्यपि उसने कई अन्य को दिया तथापि बुनियाद में उसकी भूमिका सदा ही रही । अखबार को सामाजिक क्रांति, साहित्य चेतना और राजनीतिक जागरूकता का औजार बनाकर सहकारी युग ने अपनी पत्रकारिता-यात्रा को वर्ष भर जारी रखा।
इस वर्ष लेख ,कहानी, कविता आदि विधाओं के द्वारा पत्र को निम्नलिखित महानुभावों ने समृद्ध किया :-
सर्व श्री उमाकांत दीप (मेरठ), महेश राही, डॉ टी.एन. श्रीवास्तव ,भगवान स्वरूप सक्सेना मुसाफिर ,रामावतार कश्यप पंकज (काशीपुर), डॉक्टर पुत्तू लाल शुक्ल (सहायक शिक्षा निदेशक इलाहाबाद), शिवादत्त द्विवेदी ,मुन्नू लाल शर्मा ,डॉक्टर लखन लाल सिंह ,अभय गुप्ता ,कुमारी सरिता अवस्थी (सीतापुर)
, जितेंद्र (मेरठ), सुरेश राम भाई ,गजेंद्र चौधरी ,अशोक सिंघल (शाहजहांपुर), श्याम कुमार अवस्थी ,मयंक सीतापुरी ,निर्भय हाथरसी ,राधा कृष्ण कपूर ,इंदु धर द्विवेदी (पुणे), विजय कुमार आगे ,लक्ष्मी नारायण मोदी ,विजय कुमार एम.ए. ,साहित्य रत्न, मोहनी शंकर सक्सेना (बरेली), कुमार विजयी (बरेली) और सुशीला मिश्र । उपरोक्त लेखकों में मयंक सीतापुरी ,रामावतार कश्यप पंकज और गजेंद्र चौधरी जौहरी ने अपनी लेखनी की निरंतरता से सहकारी युग को वर्ष भर प्रचुर साहित्य-राशि अर्पित की।

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