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24 Aug 2019 · 1 min read

मुक्तक

आंखों के कोर से उतर कर

कलम के छोड़ पे बैठ जाते हो

तुम बड़े बेकार हो पुर्दिल

कभी आँसू तो कभी स्याही बन जाते हो

…सिद्धार्थ

जिंदगी मुझे बदलने की तरकीबें सोचती रही

हमने छुट्टा देकर छुट्टा कर दिया

जो चीज अपनी है पराई करने से साफ मना दिया !

…सिद्धार्थ

कहीं ताखे पे रख दिया हो, जैसे यादों के मेरी

तभी तो एक बार सखी कह के बुलाते नही हो !

…सिद्धार्थ

Language: Hindi
2 Likes · 452 Views
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