वस्रों से सुशोभित करते तन को, पर चरित्र की शोभा रास ना आये।
वस्रों से सुशोभित करते तन को, पर चरित्र की शोभा रास ना आये, कलयुग की पराकाष्ठा तो देखो, चेहरों पर हैं चेहरों के साये, अहंकार का स्वर है ऊँचा, विवेक...
Poetry Writing Challenge · Manisha Manjari · Manisha Manjari Hindi Poem · कविता · मनीषा मंजरी