6) जाने क्यों
जाने क्यों
मन व्याकुल रहता है,
क्या क्या ये सोचता है,
कहूँ किससे
ये कहाँ समझ आता है,
बीच समन्दर में कश्ती
जैसे हिचकोले खाता है,
डर डरकर लहरों को
बस देखता जाता है,
कहीं तूफान न आ जाए
यही सोचता रहता है,
डरता जब तूफानों से
प्रभू का नाम रटता है,
हर सांस में पुकार है
देव से समाधान मांगता है,
कब, क्यों, कैसे, कहाँ के
सवालों से घिरा रहता है,
उत्तर प्रतिउत्तर के द्वंद में
उलझा उलझा सा रहता है,
ये मन अपनों में
अपना ढूंढता रहता है,
कहने को तो कई अपने हैं
पर अपनापन कहाँ दिखता है,
जाने क्यों
मन व्याकुल सा रहता है।
–पूनम झा ‘प्रथमा’
जयपुर, राजस्थान
Mob-Wats – 9414875654
Email – poonamjha14869@gmail.com