51. लाशों का मंजर
चारों तरफ देख रहा हूँ,
मैं लाशों का मंजर ।
चिख – पुकार मची हुई है,
आर्यावर्त के अंदर ।।
ये चिख – पुकार सब सुन सुनकर,
गड़ चुका है मेरे सीने में भी खंजर ।
चारो तरफ देख रहा हूँ,
मैं लाशों का मंजर ।।
एक शोला सुलग रहा है,
मेरे भी दिल के अंदर ।
कब ये ज्वालामुखी फटेगी,
यह ना जाने सिकंदर ।।
यह कोहराम मचाया है,
कुछ भालू और बंदर ।
चारो तरफ देख रहा हूँ,
मैं लाशों का मंजर ॥
कवि-मन मोहन कृष्ण
तारीख – 18/5/2020
समय – 11:00 (रात्रि)