(4) ऐ मयूरी ! नाच दे अब !
ऐ मयूरी ! नाच दे अब,
कर रहा यह मेघ कब से छाँव तुझ पर !
क्यों अचल से दृग तुम्हारे, आज स्थिर हो रहे हैं ?
क्यों सजल सी नयन कोरें, उठ रहीं , फिर गिर रही हैं ?
आज साहस साथ लेकर सामने पहुंचा तुम्हारे
आज तो देवांगना इस और अपनी दृष्टि कर दो
कामिनी ! कर प्रलय तू अब !
प्रणय का अनुरक्त मिटने आ गया है आज तुझ पर !
ऐ मयूरी !
पंख फैला नाचने को, पर कहीं तू उड़ न जाना
तरल ज्वाला बिन बुझाये, गगन का मत छोर बनाना
जोड़ दो मन-गाँठ, अब !
नैन बनकर प्रीति-डोरी, बांधते मुझको तुझी पर !
ऐ मयूरी !
तेरी अलकों से मलय-सौरभ मचलता आ रहा है
तेरे अधरों पर कुसुम रक्ताभ खिल, हिल-डुल रहे हैं
तेरे नयनों में गुलाबी स्वप्न विचरण कर रहे हैं
सहज स्वीकृति बोध दे दे !
नव-सृजन का नव-निमंत्रण, ईश का निर्देश तुझ पर !
ऐ मयूरी !
रात्रि की अमराइयों में कूक तेरी रोज उठती
मधुर मद्धिम प्रीति की अगणित तरंगें है उमड़तीं
मुस्कुरा दे आज पल भर !
जा रहा यह पथिक देकर प्यार का सब भार तुझ पर !
ऐ मयूरी !
इस तरह क्यों विवश-मुक्ते ! झुक रहे हैं दृग तुम्हारे ?
हास्यमय रोदन लिए क्यों, मुख-परिधि बनती तुम्हारी ?
शांति से संताप सह अब !
विश्व-दुःख-घन ,आज क्षण भर, घिर पड़ेगा प्रिये, तुझ पर !
ऐ मयूरी !
आज क्षण विलगाव का है, मिलन की अब “इतिश्री” है
आज तो हॅंस कर, सहज-मन, आत्मा का मिलन कर दो !
मद, हलाहल,अमृत दे दे !
युग-तृषित की तृप्ति का हर भार तुझ पर !
ऐ मयूरी !
स्वरचित एवं मौलिक
रचयिता :(सत्य) किशोर निगम