2791. *पूर्णिका*
2791. पूर्णिका
दिल की भाषा जो समझते
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दिल की भाषा जो समझते।
रोज पहेली बुझ चमकते ।।
बहती धारा भी प्यार की ।
दुनिया हरदम बस महकते।।
सपने अपने साकार हो ।
बनकर पंछी मन चहकते।।
मंजिल मिलती कर मेहनत ।
खुशियाँ भी आकर बरसते।।
बेफिक्र रहते खेदू यहाँ ।
इतिहास पुराने बदलते ।।
……….✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
06-12-2023बुधवार