2771. *पूर्णिका*
2771. पूर्णिका
ढ़लती है रात तो सबेरा होता है
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ढ़लती है रात तो सबेरा होता है ।
जग में हरदम कहाँ अंधेरा होता है ।।
यूं उम्र भी बीतती भले ही दोस्त यहाँ ।
दिल में जिंदादिली बसेरा होता है ।।
सुंदर दुनिया नयी कहानी है अपनी।
कहते मेरा नहीं,न तेरा होता है ।।
रख तू इंसानियत कहे देखो इंसां ।
दिखते है सांप क्या सपेरा होता है ।।
देकर कुछ साथ हम निभाते हैं खेदू ।
जनमों का बंध सात फेरा होता है ।।
………..✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
27-11-2023सोमवार