मेघाें को भी प्रतीक्षा रहती है सावन की।
हवस में डूबा हुआ इस सृष्टि का कोई भी जीव सबसे पहले अपने अंदर
मैं एक फरियाद लिए बैठा हूँ
आधुनिक टंट्या कहूं या आधुनिक बिरसा कहूं,
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
जन्मदिन विशेष : अशोक जयंती
मैंने रात को जागकर देखा है
मैं रुक गया जो राह में तो मंजिल की गलती क्या?
*कंचन काया की कब दावत होगी*
कुछ लोग प्यार से भी इतराते हैं,
" महक संदली "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
वो शिकायत भी मुझसे करता है
गिराता और को हँसकर गिरेगा वो यहाँ रोकर
राना लिधौरी के बुंदेली दोहे बिषय-खिलकट (झिक्की)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'