तेवरी में नपुंसक आक्रोश +बी.एल. प्रवीण
जो दिल्ली का संपूर्ण सिंहासन भगवा में ना रंग पाता,
*अपनी-अपनी जाति को, देते जाकर वोट (कुंडलिया)*
#ਜੇ ਮੈਂ ਆਖਾਂ ਨਹੀਂ ਜਾਣਾ
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
हम जीवन के विपरीत चलते हैं इसीलिए हमें बस दुःख और निराशा का
हर दुआ में है, खैर बस तेरी
मुझे किसी की भी जागीर नहीं चाहिए।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
कहावत है कि आप घोड़े को घसीट कर पानी तक ले जा सकते हैं, पर म
मुझे मेरा गांव याद आता है
हमें भी जिंदगी में रंग भरने का जुनून था
मेरा नौकरी से निलंबन?
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
विजय कराने मानवता की
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
चार कंधों पर मैं जब, वे जान जा रहा था
समाजों से सियासत तक पहुंची "नाता परम्परा।" आज इसके, कल उसके
वो जो करीब थे "क़रीब" आए कब..
किणनै कहूं माने कुण, अंतर मन री वात।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
तुम मेरे हम बन गए, मैं तु्म्हारा तुम
क्या यही हैं वो रिश्तें ?