2325.पूर्णिका
2325.पूर्णिका
🌹ना पूछे कोई क्या चाह हमारी 🌹
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ना पूछे कोई क्या चाह हमारी ।
मंजिल बोले क्या राह हमारी ।।
दिल में किसके प्यार नहीं बोल कहाँ ।
है कमजोर यहाँ क्या बांह हमारी ।।
आना जाना रोज लगा रहता है ।
यूं मिलती रहती क्या छांह हमारी ।।
आज जज़्बातें बदल गई है देखो ।
सब चाहत रखते क्या दाह हमारी ।।
इंसानियत जहाँ जिंदा है खेदू ।
लेते रहते सच क्या थाह हमारी ।।
…………✍डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
29-5-2023सोमवार