(19) माता “कौशल्या ” का दर्द
मात कौशल्या एक टक लगी,
देखे राह बारम- बार।
कभी तो आएगा मेरा लाल।
पलकें ना झपके, खाना ना खाए।
मात कौशल्या श्री राम जी को बुलाए।
मैंने न तुझ को डांटा कभी रे,
फिर क्यू मुझ को इतना रुलाए।
एक मिनट ना तेरे बिन रह पाऊं,
14 वर्ष में कैसे बिताऊं।
कैसे मै राज- पाट को भोगु,
तू तो चला गया अब ,
खुद को कैसे मै रोकूं।
तू है श्री “नारायण” मै जानू भली भांति,
पर तेरे बिन इस महल में जले ना दिया ना बाती।
तेरा बिछोड़ा किसको सुनाऊ ,
पिता तेरे संग दुनिया से मै भी जाऊं।