18- दिल की बात 2
दिल की बात 2
कर तुमसे स्नेह फूलों से प्यार
होती रही बसर यूँ ही मेरी ज़िन्दगी तमां॰,
सोने से इश्क न चाँदी से प्यार,
प्रज्जवलित रही सदा सन्तोष की शयाँ।।
बसने का देखा मैंने एक ख़्वाब दिल में आपके,
पर आपने दिल में मेरे,
है बना लिया अपना मकाँ ।
क्या कहूँ कहने को कुछ
बाकी नहीं है मेरे पास।
शब्दों के अभाव में
कुंठित हुई मेरी जुबाँ |
“दयानंद”