17)”माँ”
सुगंध है फूल की आँचल में बिखेर रही,
तकलीफ़ में भी खोजी ख़ुशी,गोद में समेट रही।
ज़िंदगी वहीं जो लाड और दुलार ले,
मौन रह कर भी संवार रही प्यार से।
माँ…
लंबी यां चार दिन की साँसे, कोई परवाह नहीं,
प्यार की सुंदर डोर, गोद में सहला रही।
शब्द हैं जो अपने, सीमा में रह रहे,
मन के भाव जो कुछ न कह रहे।
मोह के धागे हैं बंधे, परवरिश से संझो रही,
टूट न जायें कतरा कतरा, हाथों से सहेज रही।
माँ…
सुख-दुख के सागर में बहती रही,
चाहत यही शेष है मन में,
ज़िंदगी चमकती हो भोर,
खिलखिलाता रहे हरेक छोर,
आस यह जगाती रही।
माँ…
दिन बीते और बीत रहे,
भावनाओं को सम्भालती माँ,
प्यासे हैं नयन, मन है विचलित,
यादों का दामन थामे है माँ,
साँसे नित पुकारती, ह्रदय को सहलाती,
स्वयं को दिलासा देती है माँ।
माँ…
✍🏻स्वरचित/मौलिक
सपना अरोरा।