15- चोर
चोर
नहीं कोई काम करना लेकर अच्छे की आशा ।
हराम की कमाई सदा पाने की लालसा।।
संकट की आती घड़ी मार्ग नहीं पाता।
गीदड़ की मौत आती गाँव में है जाता।।
चोरी करने को चोर रात भर जागता ।
सुख चैन गायब सब दिन भर भागता।।
रोटी पानी खाने को उन पर कोई समय नहीं ।
जीवन का कोई क्षण होता कभी अभय नहीं।।
माल बंटवारे में सदा होता विवाद रहे ।
मन सुकून नहीं दिल नाशाद रहे ।।
पकड़े यदि जायें खाते पुलिस की गोली |
सींकचों के अन्दर कटती दीवाली व होली ।।
रात-दिन डण्डे खाते और मोटी-मोटी रोटी।
अगर ये न करते काम, तो ये नौबत न होती।।
जीवन उनका नर्क बने घर की बर्बादी ।
जेल और मुकदमे से मिले न आज़ादी।।
बच्चे पत्नी त्रस्त रहें आमद का न साधन।
जमा-पूंजी खर्च हुई सूना हुआ आँगन।।
“दयानंद”