(14) उम्मीद
मैं वो उम्मीद हूं जिसे पानी की लहर कहते हैं,
चीर दूंगी मैं पत्थरों का भी सीना,
इसी को कहते हैं हिम्मत से जीना ।
बूंद हूं मैं वो, जो सागर बनाने का जज़्बा रखती हूं,
मत सोचना मै पीछे हट जाऊंगी,
क्योंकि मैं एक लड़की हूं।
यदि मकड़ी सौ बार गिरने पर भी खड़ी हो सकती है।
मैं तो फिर भी एक इंसान हूं हजार बार,
गिरने पर भी खड़ी हाउगी।
पपीहा तब तक पानी नहीं पीता,
जब तक सवांती बूंद उसे नहीं मिल जाती।
लेकिन फिर भी उसकी हिम्मत कम नहीं होती।
तो मैं कैसे हार मान लूं, माना नहीं मेरे पास आज कुछ
वर्तमान में भी न हो ये कैसे मान लूं।