10. मैं एक मनुष्य हूँ मेरा भी परिवार है
दोस्तों, मैं जिंदगी से बहुत निराश हूँ,
अभी मौत से दूर, मगर जीवन के पास हूँ ।
माना कि मंजिल नहीं पाया हूँ अबतक,
पर जिंदगी हमें निराश करेगी भी कबतक ।।
रुक-रुककर ही सही पर चलता लगातार हूँ,
मैं किसी के लिए लाठी तो किसी के लिए तलवार हूँ ।
मैं एक मनुष्य हूँ मेरा भी परिवार है,
कैसे शासक बने हो तुम जिससे देश लाचार है ।
धरातल की गलियों में जरा चलकर तो देखो,
कहीं उजालों से चकाचौंध, तो कहीं घना अँधेरा है।
किसी को नसीब होता राजभवन का सुख,
तो किसी पर गरीबी का बसेरा है ।
आप सभी सोचते हैं, ये शब्दों की दुनिया है,
हमारी शब्दों को सही समझकर तो देखें, तड़पती हमारी मुनिया है ।
हमारी तड़पती मुनिया को देखकर भी, तुमसब आराम से सोते हो ।
मुनिया बेचारी रोती- कराहती, नींद-चैन सब खोती है ।
वो लाचार होकर, कुछ आस हमसे, तो कुछ आस तुमसे भी रखती है ।
गरीबी और तकलीफ, हमसभी के परिवारों ने झेला है ।
पर आज यहाँ अमीर और सबसे अमीर बनने का खेला है ।
शरहद पर गोली फौज खाते हैं, और जीत का मौज हमसब मनाते हैं।
मौत का शोक तो केवल, परिजन को होता है ।
हमसब तो आमजन हैं, हरिजन बन चुके हैं,
जिंदगी के बदले, जीवनभर का गुनहगार बन चुके हैं ।
हमारी गंदी सोच ही, देश को बदनाम कर देता है ।
पर हमारा हिंदुस्तान जब नींद से जागता है,
तो अच्छों अच्छों की नींद हराम कर देता है ।।
कवि – मन मोहन कृष्ण
तारीख- 05/07/2018
समय – 11 : 03 ( रात्रि )