?गज़ल?
?ग़ज़ल?
बहर-12122/12122/12122/12122
चले कहाँ तुम इधर पधारो नज़र तुम्हें ही बुला रही है
नयी मुहब्बत दिले-इनायत चाहत हमें भी सिखा रही है//1
जवां दिलों की मिलन घड़ी है नज़र-नज़र से अभी लड़ी है
क़रीब आओ दिले-चमन में कसक हसीं गुल खिला रही है//2
गुलाब लब के बयान मीठे हमें लुभाएँ नये-नये से
लबे-जवानी लबों से पढ़लूँ ख़ुमारी दिल को जला रही है//3
हमें तुम्हारे तुम्हें हमारे दिले-जिग़र की क़दर मिलेगी
क़लाम तस्व्वुर की वफ़ा भी यही हमें तो बता रही है//4
??आर.एस.’प्रीतम’??