???तुम्हे खोजने का आनंद???
खोजता हूँ,
सरणी को,
स्वयं में,
प्राशस्त्य से,
आवरण हो,
सत्य का,
धैर्य का,
उत्साह का,
चिन्तन का,
एकत्व में,
सूक्ष्म बनकर,
अव्याकृत भाव से,
सहास से,
अरुणिमा जब फूटती,
नए उल्लास जैसे,
विवर्ध्दित करती मुझे,
शांति से,
प्रथित होने की,
आशा से,
तुम्ही तो दृश्य बनकर,
उभरे हो,
खोजते खोजते,
खोजना भी भूलूँ,
यही चाह है,
ऐसा करोगे न,
मेरे लिए कमनीय बनकर,
दर्शनीय बनकर,
सुशब्द बनकर,
जो प्रतिध्वनित करे,
तरंगे अनन्त की,
बार-बार,
खो जाऊं उनमें मैं
बस यही खोज है,
@अभिषेक: पाराशरः