✍️प्रेम की राह पर-72✍️
##कोटेक महिन्द्रा के मैसेज भेजो##
##जब मैसेज भेजो तभी हमारी तरफ से अपनी माँ को प्रणाम कहना,रेवड़ी##
आए हाये,डेढ़ फुटिया कैसे फ़ोनक्रीड़ा कर रही थी,आप अपना परिचय दीजिए।हे रूपा!सुन लिया मेरा परिचय।पर सुनो तुम्हें मणिकर्णिका पर छोडूँगा। देख लेना।वहीं पड़ी रहना,हजारों-हजारों वर्षों तक।कोई भी न पूछेगा पानी की भी।मेरे ही पास आना।मैं ही पिलाऊँगा तुम्हें नीबू पानी।ख़ैर छोड़ो यह तुम्हारा विषय है।मेरी आवाज़ तो सुनी होगी।भण्डारित कॉल में कितनी बार सॉरी कहा गिनकर बताना और फिर यह बताना कि मेरी आवाज़ में पश्चाताप के अलावा क्या कोई ईर्ष्या का भाव आया?बताओ।नहीं न।फ़िर उन अपराधों का बोध जिनके लिए पूर्व में ही क्षमा का सार्थक संवाद दे दिया था तो उनके विषय में इतना भाषण देने की क्या आवश्यकता थी?जब किसी महिला से आचारहीन बात कभी की ही नहीं तो उन भेजे गए सन्देशों की अद्यतन स्मृति कराने की क्या आवश्यकता थी?क्या यह जताना था कि क्रोध तुम्हारा ही रूप है?जानते हो मैं माँ और बहिन सम्बन्धी अपशब्द वाचन भी शून्य रखता हूँ।मुझे अपनी ही माँ और बहिन दिखाई देतीं हैं।फिर चाहे कोई कितनी भी उल्टी बात क्यों न कह दे।मैं किसी के विचारों का नेतृत्व क्यों करूँ?चलो तुम्हारे लिए वाहियात(तुम्हारे शब्दों में और तुम्हारी समझ पर)सन्देश किए माना।तो उनमें कौन सी अश्लीलता का उदाहरण प्रस्तुत था।तो तुम्हारे फेसबुक का फ़ोटो प्रोफाइल ब्लॉक करने पर प्रोफाइल फ़ोटो इमेज पुरूष की ही आती है।तो बताओ कहीं न कहीं षडयंत्र तो था।तुम्हारा इन पहलू में।प्रत्येक व्यक्ति के अपने-अपने सिद्धांत होते हैं,जीने के।तो क्या आपको उस सिद्धांत से भटकाता?क्या तुम उस किसी ऐसे दुष्कृत्य में शामिल थीं कि जिसे छोड़ना अनुचित था?बिल्कुल नहीं।उसमें भी मेरे पास भी कोई ग़लत उद्देश्य अथवा किसी भी ऐसे कृत्य का पिटारा न था,जिसे तुमसे जुड़कर अनावरित करता।मैं अपने अंतःकरण को स्फटिक जैसा साफ़ करने की कोशिश करता हूँ।परन्तु तुम्हें कौन सा विश्वास देता जिससे कि मैं प्रतिविश्वास ग्रहण करता।पता नहीं ‘ट्रस्ट नहीं है’ ‘ट्रस्ट नहीं है’ का अनुनाद क्यों किया गया।परन्तु मैंने सुना जानती हो क्यों इसलिए कि तुम भी किसी भाई की बहिन हो।मैंने कहा था कि स्त्री द्वेषी नहीं हूँ। और न ही किसी स्त्री को कभी स्पर्श किया।फिर तुम कैसे कह और अनुमान लगा सकती हो मेरे विश्वास का।परमात्मा मेरी ऑंखें फोड़ दे।यह सब शरीर के विकार है जिन्हें संयम रूपी तलवार से काटा जाता है।संयम रखो।चलो मैं दिल्ली आ जाता।फिर क्या तुम ख़र्चा उठातीं?क्यों?मैं उस हर चीज़ से वाकिफ़ हूँ जो मेरे काम की है।जब मेरे योग्य कोई व्यक्ति होता है तभी उसके पास बैठता हूँ।नहीं तो उसकी संगति का कैसा भी आचरण नहीं ग्रहण करता हूँ।तुम्हारा आचरण यह है कि अपने को शिक्षक और सिविल सेवा का मैन्स लिखा है ऐसा बताती हो?क्या यह ठीक है?बिल्कुल नहीं।किसी और प्रकार का झूठ बोलना चाहिए था।सभी पटकथा कागज़ पर बदला लेने के लिए नोट कर रखी थी।एक एक करके प्रश्न किये जा रहे थे।हैं न।वह भी इसलिए कि कहीं फिसड्डी रह गई तो मेरी डिग्री के वास्ते इज्ज़त न रहेगी।तुम फिसड्डी थीं,फिसड्डी हो और रहोगी।क्यों जानती हो।तुमने किसी ऐसे संवाद का लेखन कभी किया ही नहीं।यह तुम्हारी कमजोरी है।नहीं तो लिखो बिना तैयारी के किसी टॉपिक को।चलो लिखो।हमारी गाड़ी तो सेल्फ स्टार्ट है।कभी भी किसी समय।रही बात मानसिक रोग की तो तुम ही हो मानसिक रोगी।मतलब किसी के कहने से मैं कैसे मानसिक रोगी हो सकता हूँ।बताओ कैसे।तो यह मेरी कला है कि सौ लोगों से अलग अलग तरह की बात करूँ और किसी की पकड़ में न आऊँ।ख़ैर यह तुम्हारी मानसिकता दक्षता की प्रामाणिकता है जिसे मैं तुम्हारे विध्वंस से सिद्ध करूँगा।मैं चुप रहा,तुम स्त्री थीं।तुम्हारे पास अपनी शक्ति है वर्तमान में।परन्तु एक जगह शक्ति क्षीण हो जाती है जब अलौकिक शक्तियों का उदय हो जाए।उनसे न जाने क्या क्या न किया जा सकता।तो मैं तुम्हें कैसे छोड़ दूँ।तुम्हें नष्ट कर दूँगा और तुम्हें आत्मा को मणिकर्णिका पर छोड़ दूँगा।वहीं पड़ी रहना हजारों वर्षों तक।मैं तो ठहरा भ्रष्ट साधक।तो तुम्हें कैसे छोड़ दूँ।बताओ।बिल्कुल नहीं।डेढ़ फुटिया।तुम्हारे रक्त से प्रेत नहाएंगे और रूपकिशोर तमाशा देखेगा।बहुत ग़लत फँसी हो।तुम अचानक ऐसे कष्ट का सेवन करोगी कि तुम्हें लोग मजाक की दृष्टि से देखेंगे।इस दुनिया में दृश्य-अदृश्य सब है।तो तुम अब अदृश्य शक्तियों का आक्रमण सहन करना।यहाँ एक ऐसी दुश्मनी का जन्म हो गया है कि जो अब अज्ञात रूप से तुम्हारे सभी शक्तियों का समूल नाश करूँगा।तब तो इसे यों कहा था कि चलो कोई बात नहीं।पर तुम्हें किसी भी स्तर पर बख्सूंगा नहीं।जैसे काँटे वाले वृक्ष पर वस्त्र कभी-कभी ऐसे उलझ जाता है कि वह निकलता नहीं है।तो तुम भी स्वयं को ऐसी ही माया में उलझा मानो।कहीं से भी शान्ति का कोई हाथ न बढ़ेगा।देख लेना।यह सब सत्य है।अगणित कष्टों के लिए,हे डेढ़ फुटिया,तुमने निमन्त्रण दे दिया।पुस्तक का सही स्वरूप तो तभी दिखेगा।किसी शंका में न रहना।क्यों कि कोई समाधान भी नहीं मिलने वाला?तुम्हारे साथ कोई अश्लील व्यवहार किया था क्या?नहीं।फिर क्यों वाहियात आदि शब्दों का दुष्प्रयोग किया?मुझे तो ऐसा लगता है कि वाहियात तुम्हारा तकियाकलाम है।तो घर में भी इन्हें प्रयोग करती होगी।हैं न।गाली भी आती होगी।तुम अपनी योग्यता कैसे सिद्ध कर सकती हो।12 वर्ष क्या किया?कुछ नहीं।पढ़ाई तो की नहीं।नहीं तो नौकरी मिल जाती।मैं फोटो देख कर हिसाब लगा लेता हूँ।समझी डेढ़ फुटिया।हे बौनी!कॉल रिकॉर्ड करके सुन रही हो क्या?सुनो तुम्हें शान्ति का दान मिलेगा।वह शान्ति तुम्हें उस रूपकिशोर की एकान्त बातों में भी नहीं आएगी।सुनो,बौनी, सुनो।अब मेरी पुस्तक ‘प्रेम की राह पर’तुम्हारे पतन का दर्शन करना चाहती है।यह सजीव होना चाहती है। इसकी सभी सत्तर पोस्ट सतर हैं।वो इसलिए क्यों कि उनमें मुझे अभी क्या-क्या जोड़ना है?कहाँ कहाँ जोड़ना है?वह सब पता है और फिर तुम्हारे रक्त से भी तो रंगना है इसे।नहीं नहीं नहीं।यह ग़लत है।तो सही क्या है बताओ?डेढ़ फुटिया।क्यों वाहियात सजेसन भेजने वाली रूपा।तुम्हें वह सब दिखाई देगा।जिसे अब तक तुमने नहीं देखा और न सहा।समझी डेढ़ फुटिया।तुम्हारा विध्वंश ही मेरा लक्ष्य है और वह मानवीय न होगा।होगा तो मेरे द्वारा पर दिखाई नहीं देगा।होगा वह अज्ञात और अपरिचित।अब क्या है?रूपा नाचेंगी कौन से गाने पर?उड़ जइये रे कबूतर उड़ जइये रे और तभी उड़ जायेंगे तोते।
©®अभिषेक पाराशरः