✍️क्रांतिउर्जा के क्रांतिसूर्य
सदियों के
घने अंधरो की
सख़्त दीवारों को
फाड़कर निकला था
उसकी आँखों से
आफ़ताब की रोशनी
का एक बवंडर..
कफ़स में
पड़े मुर्दा ज़िस्म
उठकर खड़े हुए
मानो साँस के लिए
तरसती रूह में जान
भर आयी हो..
मानो अफ़ीम की
गहरी नींद में सोयी
हुई आँखे हजारो साल
बाद जागी हो..
वहशी कीचड़ में
फँसे आत्मसन्मान को
खींच कर लाया है
उस ख़ुर्शीद ने तुम्हारे
लिए शोहरत के उजाले
हर वक़्त हर पल सिर्फ
जीना है उस नाम के साये में
बस आसमाँ की तरफ नजरे उठाले
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©✍️’अशांत’ शेखर
06/12/2022