{{◆ दस्तखत ◆}}
आज तुम्हारे पुराने कुछ खत मिले
बीते यादों के भूले कुछ वक़्त मिले
आँखे कुछ धुंधली सी हो गई
ज़ख्मो के कुछ दस्तख़त मिले
मेरी वफ़ा का तुमने क्या मोल दिया
क्यों मोहब्बत को शर्तो पे तौल दिया
ज़रा न सोचा मेरे दिल का
जो मन में आया, तुमने बोल दिया
तुम चाहते तो निभा भी सकते थे
थी कोई कमी तो बता भी सकते थे
क्या ज़रूरत थी बेवफ़ाई की
तुम हक़ भी तो जता सकते थे
बनावटी नही थी मेरी चाहत
एक तुमसे ही थी दिल को राहत
आँखों में तुम कुछ ऐसे बसे थे
अंधेरे में भी जान लेते थी तुम्हारी आहट
याद आते है फिर वो लम्हे पुराने
सालों लगे थे मुझे, उसे भुलाने
हर घाव को आज फिर हवा लग गई
तेरी हर याद आ गई फिर मुझे जलाने