मैं तुझसे नज़रे नहीं चुराऊंगी,
डुबो दे अपनी कश्ती को किनारा ढूंढने वाले
बस इतनी सी अभिलाषा मेरी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
कागज का रावण जला देने से क्या होगा इस त्यौहार में
मैं इश्क़ की बातें ना भी करूं फ़िर भी वो इश्क़ ही समझती है
अगर आप हमारी मोहब्बत की कीमत लगाने जाएंगे,
अपनी ही हथेलियों से रोकी हैं चीख़ें मैंने
हमको तू ऐसे नहीं भूला, बसकर तू परदेश में
कोई नी....!
singh kunwar sarvendra vikram
ढूँढ़ रहे शमशान यहाँ, मृतदेह पड़ा भरपूर मुरारी
राजनीति में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या मूर्खता है
गर्दिश का माहौल कहां किसी का किरदार बताता है.
Tum khas ho itne yar ye khabar nhi thi,