■ #ग़ज़ल / अक़्सर बनाता हूँ….!
■ अक़्सर बनाता हूँ…..!!
【प्रणय प्रभात】
★ अजब फ़ितरत है मेरी, मोम को पत्थर बनाता हूँ।
मैं कागज़ के सिपाही काट कर लश्कर बनाता हूँ।।
★ तक़ाज़ा वक़्त का जैसा भी हो अपनी क़लम को मैं।
कभी मरहम बनाता हूँ कभी नश्तर बनाता हूँ।।
★ अगर तू बंदापरवर है तो मैं भी तेरा बंदा हूँ।
तू मेरा सर बनाता है मैं तेरा दर बनाता हूँ।।
★ कभी मुट्ठी में रुकता है किसी के नूर रोके से?
बड़ा पागल हूँ मैं भी रोशनी का घर बनाता हूँ।।
★ अँधेरा मुझसे लिपटा है चराग़ों के तले जैसा।
बरहना मैं ही रहता हूँ मैं ही चादर बनाता हूँ।।
★ ख़यालों की हवा यादों की बदली घेर लाती है।
यूँ सावन की घटा आँखों को मैं अक़्सर बनाता हूँ।।
★ किसी के पूछने पर कह दिया हँस कर शग़ल ल अपना।
ग़ज़ल के वास्ते तश्बीह के ज़ेवर बनाता हूँ।।
श्योपुर (मप्र)
8959493240